Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - सुकुमालिका का परित्याग ସରକ
तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! एवं दमगपुरिसं विपुलेणं असण ४ पलोभेह० गिहं अणुप्पवेसेह २त्ता खंडगमल्लगं खंडघडगं च से एगंते एडेह २ त्ता अलंकारियकम्मं कारेह २ त्ता हायं कयबलिकम्मं जाव विभूसियं करेह २ त्ता मणुण्णं असणं ४ भोयावेह० मम अंतियं उवणेह ।
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DECES
शब्दार्थ - एडेह - फेंक दो ।
भावार्थ - सागरदत्त ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें आज्ञा दी - देवानुप्रियो ! इस दरिद्र पुरुष को विपुल अशन-पान खाद्य-स्वाद्य का प्रलोभन दो । प्रलोभित कर इसे घर में प्रवेश कराओ। फिर इसके टूटे हुए शिकोरे और फूटे हुए घड़े के टुकड़े को एकांत में फेंक दो। वैसा कर इसकी हजामत बनवाओ। स्नान, मांगलिक कृत्य संपादित कर यावत् इसे मनोभिलषित अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य आदि का भोजन कराओ, भोजन करवाकर मेरे पास लाओ ।
(६१)
तणं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुर्णेति २ त्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छंत २ त्ता तं दमगं असण ४ उवप्पलोभेंति २ त्ता सयं गिहं अणुप्पवेसिंति २ त्ता तं खंडगमल्लगं खंडगघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एते एडेंति । तए णं से दमगे तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य (एगंते) एडिज्जमाणंसि महया २ सद्देणं आरसइ ।
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भावार्थ तब कौटुंबिक पुरुषों ने यावत् सार्थवाह का कथन स्वीकार किया और वे वहाँ आए जहाँ वह दीन पुरुष था । आकर उन्होंने उसे चतुर्विध आहार का प्रलोभन दिया, घर में लाए। फिर उसके फूटे हुए घड़े के टुकड़े एवं शिकोरे को एकांत में फेंकने को उद्यत हुए । वह दरिद्र पुरुष उन द्वारा ऐसा किया जाने पर जोर-२ से रोने- चीखने लगा ।
(६२)
तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे तस्स दमगपुरिसस्स तं महया २ आरसियसद्दं सोच्चा णिसम्म कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी - किण्णं देवाणुप्पिया ! एस दमगपुरिसे महया २ सद्देणं आरसइ ? तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा एवं वयासी
एस णं
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