Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१७७
अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - द्रौपदी-वृत्तांत GEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEace
(८३) . तए णं सा दोवई दारिया पंचधाइ परिग्गहिया जाव गिरिकंदर मल्लीण इव चंपगलया णिवायणिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ। तए णं सा दोवई देवी रायवरकण्णा उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था।
भावार्थ - तदनंतर पाँच धायमाताओं द्वारा पालित-पोषित होती हुई कन्या द्रौपदी कंदरावर्तिनी, वात आदि के व्याघात से रहित चंपकलता की तरह सुखपूर्वक बढ़ने लगी। क्रमशः उसका बचपन व्यतीत हुआ यावत् वह उत्कृष्ट सौंदर्य संपन्न यौवन को प्राप्त हुई।
(८४) तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अण्णया कयाइ अंतेउरियाओ पहायं जाव विभूसियं करेंति २ त्ता दुवयस्स रण्णो पायवंदिउँ पेसंति। तए णं सा दोवई २ जेणेव दुर्वए राया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता दुवयस्स रण्णो पायग्गहणं करेइ।
भावार्थ - तत्पश्चात् किसी एक दिन अंतःपुरवर्तिनी महिलाओं ने उसे स्नान कराया यावत् सब प्रकार के आभरणों से अलंकृत किया। वैसा कर राजा द्रुपद के चरणों में प्रणाम करने हेतु भेजा। __वह श्रेष्ठ राज कन्या द्रौपदी राजा द्रुपद के पास आई। उनके चरणों में प्रणाम किया।
(८५)
. तए णं से दुवए राया दोवई दारियं अंके णिवेसेइ २ ता दोवईए २ रूवेण य ३ जायविम्हए दोवई २ एवं वयासी - जस्स णं अहं (तुमं) पुत्ता! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियत्ताए सयमेव दलइस्सामि तत्थ णं तुमं सुहिया वा दुहिया वा भविज्जासि। तए णं मम जावज्जीवाए हिययडाहे भविस्सइ। तं णं अहं तव पुत्ता! अज्जयाए सयंवरं विरयामि। अज्जयाए णं तुमं दिण्णं सयंवरा। जे णं तुम सयमेव रायं वा जुवरायं वा वरेहिसि से णं तव भत्तारे भविस्सइ त्तिक? ताहिं इट्ठाहिं जाव आसासेइ २ त्ता पडिविसज्जेइ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org