Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
अनुग्रह करते हुए स्नानादि से निवृत यावत् अलंकारविभूषित हाथियों पर आरूढ़, कोरंट पुष्पों की मालाओं से सुशोभित, छत्र एवं श्वेत चंवर युक्त, चतुरंगिणी सेना एवं विशिष्ट योद्धाओं से घिरे हुए, स्वयंवर मंडप में पधारें ।
१६० XXXXX
आप पृथक्-पृथक् नामांकित आसनों पर यथास्थान विराजें यावत् उत्तम राजकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करते हुए वहाँ अवस्थित रहें, यह घोषणा करो। ऐसा कर मुझे अवगत कराओ । कौटुंबिक पुरुषों ने उसी प्रकार घोषणा की यावत् राजा को सूचित किया।
(११५)
तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया! सयंवरमंडवं आसियसंमज्जिओवलित्तं सुगंधवरगंधियं पंचवण्णपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरुपवर कुंदुरुक्कतुरुक्क जाव गंधवट्टिभूयं मंचाइमंचकलियं करेह कारवेह करेत्ता कारवेत्ता वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं पत्तेयं २ णामंकाई (कियाइं) आसणाई अत्थुयपच्चत्थुयाई रएह त्ता एयमाणतियं पच्चप्पिणह तेवि जाव पच्चप्पिणंति ।
भावार्थ - राजा द्रुपद ने कौटुंबिक पुरुषों को और कहा बुलाया तुम स्वयंवर मंडप में पानी छिड़कवाओ, उसे सम्मार्जित करो। मृत्तिका आदि से लिप्त करवाओ। उसे उत्तम सुरभिमय बनाओ। पांच रंग के फूलों से उसे सुसज्जित कराओ। कांले अगर, कुंदरु, लोबान की सुगंधि से यावत् गन्धवर्ति की तरह मनोभिराम सुगंधिमय बनाओ। उसमें बड़े-बड़े मंच बनवाओ, जिन पर और छोटे मंच बनवाओ। ऐसा कर वासुदेव आदि सहस्रों राजाओं के लिए उनके नामों से अंकित ऐसे आसन लगाओ जो शुभ वस्त्रों से आच्छादित हों तथा फिर उन पर श्वेत वस्त्र बिछाओ। यह सब मुझे ज्ञापित करो ।
कौटुबिक पुरुषों ने यावत् वह सब निष्पादित कर राजा को सूचित किया ।
स्वयंवर का शुभारंभ (११६)
तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउ० ण्हाया जाव
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