Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१८८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र සසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසැදු
शब्दार्थ - संतुयट्टा - परिवर्तित पार्श्व-करवट बदलना, गंधव्वेहि - गंधर्व-विशिष्ट संगीत विज्ञजन।
भावार्थ - वासुदेव आदि राजा अपने-अपने आवासों की ओर चले। हाथियों से नीचे उतरे। उनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने पड़ाव डाले। अपने-अपने आवासों में वे प्रविष्ट हुए। कई आसनासीन हुए। कतिपय शय्याओं पर लेटे। कुछ लेटे हुए करवटें बदलने लगे। बहुत से निपुण संगीतकारों एवं नाट्यकारों द्वारा प्रस्तुत संगीत, नृत्य, नाटक से वातावरण उल्लासमय था। .
(११२) तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं णयरं अणुप्पविसइ २ ता विपुलं असणं ४ उवक्खडावेइ २ ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! विपुलं असणं ४ सुरं च मजं च मंसं च सीधुं च पसण्णं च सुबहुपुप्फवत्थगंधमल्लालंकारं च वासुदेव पामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह। ते वि साहरंति।
शब्दार्थ - साहरंति - ले जाते हैं।
भावार्थ - तदनंतर राजा द्रुपद कांपिल्यपुर नगर में प्रविष्ट हुआ। उसने विपुल परिमाण में विविध-अशन-पान -खाद्य-स्वाद्य तैयार करवाए। कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और आदेश दियादेवानुप्रियो! तुम जाओ विपुल, विविध चतुर्विध आहार, सुरां, मद्य, सीधु तथा प्रसन्ना आदि विविध प्रकार की मदिराएं, मांस, अनेक प्रकार के सुंदर वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, मालाएं तथा अलंकार, वासुदेव आदि सहस्रों राजाओं के आवासों में पहुँचाओं। कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया।
(११३) ___तए णं ते वासुदेव पामोक्खा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पसण्णं च आसाएमाणा ४ विहरति जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा जाव सुहासणवरगया बहूहिं गंधव्वेहिं जाव विहरंति।
भावार्थ - वासुदेव आदि राजा विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य यावत् विविध मदिराओं के आस्वादन का आनंद लेते रहे। भोजन करने के अनंतर आचमन आदि कर वे सुख पूर्वक आसनासीन हुए, बहुत से संगीतकारों द्वारा यावत् गाए जाते मधुर संगीत में मग्न हो गए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org