Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - स्वयंवर की घोषणा १७६ sweDEODEODOGeoccccccccccccccccccccccccccccccccccx बलिष्ठ पुरुष - इन सबको तथा अन्य बहुत से राजा, सामंत, राजमान्य विशिष्टजन, मांडलिक भूमिपति, संपन्न श्रेष्ठीजन, सेनापति, सार्थवाह इत्यादि के समक्ष हाथों से अंजलि बांधकर, सिर के चारों ओर घुमाते हुए, जय-विजय से उन्हें वर्धापिति करो एवं उन्हें इस प्रकार कहो।
(८७) एवं खलु देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे णयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए चुलणीए देवीए अत्तयाए धट्ठज्जुणकुमारस्स भगिणीए दोवईए० राय० सयंवरे भविस्सइ। तं णं तुन्भे देवा०! दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे णयरे समोसरह।
शब्दार्थ - अणुगिण्हेमाणा - अनुगृहीत करते हुए, अकालपरिहीणं - अविलम्ब।
भावार्थ - देवानुप्रियो कांपिल्यपुर नगर में राजा द्रुपद की पुत्री, चुलनीदेवी की आत्मजा और युवराज धृष्टद्युम्न की भगिनी श्रेष्ठ, उत्तम राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होगा। इसलिए देवानुप्रियो! आप राजा द्रुपद को अनुगृहीत करते हुए अविलंब कांपिल्यपुर नगर में पधारे।
(८८) तए णं से दूए करयल जाव कटु दुवयस्स रण्णो एयमढे विणएणं पडिसुणेइ २त्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह जाव उवट्ठति।
भावार्थ - दूत ने दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करते हुए राजा द्रुपद का कथन स्वीकार किया। अपने घर आकर कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! शीघ्र ही चातुर्घण्ट अश्वरथ जुतवा कर यहाँ उपस्थित करो यावत् कौटुंबिक पुरुषों ने आज्ञानुसार रथ उपस्थित किया।
(८६) तए णं से दूए हाए जाव सरीरे चाउग्घंटे आसरहं दुरुहइ २ ता बहूहिं पुरिसेहिं सण्णद्ध जाव गहियाऽऽउहपहरणेहि सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरं णयरं
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