Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र aaGGERIEEEEEEEEEEEEEEEEEacancinacoccccccccccccceer सामी! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि (एगते) य एडिज्जमाणंसि महया २ सद्देणं आरसइ। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडंबियपुरिसे एवं वयासी - मा णं तुब्भे देवाणुप्पिया! एयस्स दमगस्स तं खंड जाव एडेह पासे ठवेह जहा णं पत्तियं भवइ। तेवि तहेव ठविंति। _____ भावार्थ - तब सागरदत्त ने उस दीन पुरुष को जोर-जोर से रोते हुए सुना तो उन्होंने अपने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! यह दरिद्र जोर-जोर से क्यों चिल्ला रहा है? इस पर कौटुंबिक पुरुष सार्थवाह से बोले - स्वामिन्! जब हम इसके टूटे हुए शिंकोरे एवं फूटे हुए घड़े के टुकड़े को एकांत में फेंकने लगे तो यह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। ___ तब सागरदत्त बोला - देवानुप्रियो! तुम इसके टूटे हुए शिकोरे यावत् फूटे हुए घड़े के टुकड़े को एकांत में मत डालो। उसके पास ही रख दो, जिससे उसको आश्वासन बना रहे। कौटुंबिक पुरुषों ने सार्थवाह के कथनानुसार उन्हें उसी के पास रख दिया।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तस्स दमगस्स अलंकारियकम्मं करेंति २ त्ता सयपागसहस्सपागेहिं तिल्लेहिं अन्भंगेति अन्भंगिए समाणे सुरभिगंधुव्वदृणेणं गायं उव्वटिंति उव्वट्टित्ता उसिणोदगगंधोदएणं ण्हाणेति सीओदगेणं ण्हाणेति० पम्हल सुकुमालगंधकासाईए गायाइं लूहंति २ ता हंसलक्खणं पट्टसाडगं परिहंति २ त्ता सव्वालंकार विभूसियं करेंति २ त्ता विपुलं असणं ४ भोयावेंति २ त्ता सागरदत्तस्स उवणेति।
भावार्थ - तदुपरांत उन कौटुंबिक पुरुषों ने उस दीन-हीन पुरुष का क्षौर कर्म करवाया। शतपाक, सहस्त्रपाक तेलों द्वारा मालिश करवाई। सुगंधित पदार्थों से उबटन करवाया। गर्म एवं ठण्डे जल से क्रमशः स्नान करवाया, स्नान करवा कर सुंदर गंध प्रसाधित रोम युक्त सुकुमार तौलिये द्वारा शरीर को पुंछवाया। हंस के समान श्वेत वस्त्र पहनाए। सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। प्रचुर अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य पदार्थों से भोजन करवाया। ऐसा कर वे उसे सार्थवाह सागरदत्त के समक्ष ले गए।
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