Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१७२
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුළපුපු
शब्दार्थ - चामरुक्खेवं - चँवर डुलाना।
भावार्थ - उस चंपा नगरी में देवदत्ता नामक वेश्या निवास करती थी। वह बहुत ही सुकुमार एवं सुंदर थी। एतद्विषयक विस्तृत वृत्तांत इसी सूत्र के अण्ड नामक तीसरे अध्ययन से ग्राह्य है। किसी समय उस लालित्यप्रिय गोष्ठी के पाँच पुरुष इस देवदत्ता वेश्या के साथ सुभूमिभाग उद्यान में, उसकी शोभा का आनंद ले रहे थे। एक पुरुष ने देवदत्ता को गोद में बिठा रखा था। दूसरे ने पीछे छत्र धारण कर रखा था। तीसरा उसे पुष्पों से सजा रहा था। चौथा उसके पैरों के महावर रच रहा था। पाँचवाँ चंवर डुला रहा था।
(७४) तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं तेहिं पंचहि गोहिल्लपुरिसेहिं सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणिं पासइ २ ता इमेयारूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमा इत्थिया पुरापोराणाणं कम्माणं जाव विहरइ। तं जइ णं केइ इमस्स सुचरियस्स तवणियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तो णं अहमवि आगमिस्सेणं भवग्गहणेणं इमेयारूवाई उरालाई जाव विहरिज्जामि-त्तिकटु णियाणं करेइ २ त्ता आयावणभूमिओ पच्चोरुहइ।
भावार्थ - उस समय आर्या सुकुमालिका ने देवदत्ता गणिका को पाँच गोष्ठी पुरुषों के साथ मनुष्य भव संबंधी विपुल भोग भोगते हुए देखा। उसके मन में ऐसा संकल्प उत्पन्न हुआ। यह स्त्री अपने पूर्वकृत या पुण्य कर्मों के परिणाम स्वरूप यों सुखपूर्वक विहार कर रही है। इसलिए यदि मेरे द्वारा आचरित तप, नियम, ब्रह्मचर्यादि व्रतों का कल्याण रूप फल विशेष हो तो मैं भी अपने आगामी भव में मनुष्य भव संबंधी विपुल कामभोग करूँ। इस प्रकार निदान कर वह अपनी आतापना भूमि में आ गई। सुकुमालिका की देह संस्कारपरायणता
(७५) तए णं सा सूमालिया अजा सरीरबउसा जाया यावि होत्था अभिक्खणं २ हत्थे धोवेइ पाए धोवेइ सीसं धोवेइ मुहं धोवेइ थणंतराइं धोवेइ कक्खंतराइं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org