Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र HEROINEERICIERONCERacecomecasacaeKIROGREENECKOREGERCIECORK जाहे णो संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विप्परिणामित्तए वा ताहे संता तंता परितंता णिव्विण्णा समाणा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
__भावार्थ - तत्पश्चात् रत्न द्वीप देवी जिनपालित के पास आई और बहुत से अनुकूल प्रतिकूल, तीक्ष्ण, मधुर, श्रृंगार पूर्ण, करुणायुक्त उपसर्गों से उसे क्षुभित, विपरिणामित नहीं कर सकी तो अत्यंत श्रांत, खिन्न तथा उद्विग्न होकर, जिस दिशा से आई थी, उधर ही चली गई। ..
. (६१) . तए णं से सेलए अक्खे जिणपालिएण सद्धिं लवण समुदं मझमज्झेणं वीईवयइ २ त्ता जेणेव चंपा णयरी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता चंपाए णयरीए. अग्गुजाणंसि जिणपालियं पट्टाओ ओवयारेइ २ त्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! चंपा णयरी दीसइ तिकट्ट जिणपालियं आपुच्छइ २ ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
भावार्थ - शैलक यक्ष जिनपालित को साथ लिए लवण समुद्र के बीचोंबीच होता हुआ आगे बढ़ता रहा। यों चलता-चलता वह चंपा नगरी पहुँच गया। चंपा के मुख्य उद्यान में उसने जिनपालित को अपनी पीठ से उतारा और कहा - देवानुप्रिय! यह चंपा नगरी दिखाई दे रही है। यों कहकर उसने जिनपालित से विदाई ली और जिस दिशा से वह आया था, उस ओर चला गया।
(६२) तए णं जिणपालिए चंपं अणुपविसइ २ त्ता जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे जाव विलवमाणे जिणरक्खियवावत्तिं णिवेदेइ। तए णं जिणपालिए अम्मापियरो मित्तणाइ जाव परियणेणं सद्धिं रोयमाणाई बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेंति २ ता कालेणं विगयसोया जाया।
शब्दार्थ - मयकिच्चाई - मृतक कृत्य, विगयसोया - शोक-रहित।
भावार्थ - तत्पश्चात् जिनपालित चम्पा में प्रविष्ट हुआ, अपने घर आया। माता-पिता के पास पहुँचा। उसने स्वयं रोते हुए यावत् विलाप करते हुए माता-पिता से जिनरक्षित की मृत्यु का समाचार कहा।
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