Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - तेतली पुत्र का घोर तिरस्कार ११७ OGGGEReccccccccccccccccccccccccccccccccccccces. ते तहेव आढायंति परियाणंति अब्भुट्टेति २ ता अंजलि परिग्गहं करेंति इट्ठाहिं कंताहि जाव वग्गूहिं आलवेमाणा य संलवमाणा य पुरओ य पिट्ठओ य पासओ य मग्गओ य समणुगच्छति। ___भावार्थ - अमात्य तेतली पुत्र को ज्यों ही बहुत से राजन्यगण सामंत यावत् राज्य सम्मानित परुषों ने देखा तो उन्होंने पूर्ववत उसका आदर किया। सम्मान की दष्टि से देखा. खडे संजायभए एवं वयासी-रुटे णं मम कणगज्झए राया। हीणे णं मम कणगज्झए राया। अवज्झाए णं कणगज्झए (राया)। तं ण णज्जइ णं मम केणइ कुमारेण मारेहिइ तिकट्ट भीए तत्थे (य) जाव सणियं २ पच्चोसक्केइ २त्ता तमेव आसखंधं दुरुहेइ २त्ता तेयलिपुर मज्झ-मज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
शब्दार्थ - अवज्झाए - दुर्भाव युक्त, कु-मारेण - कुत्सित-वीभत्स मृत्यु से।
भावार्थ - तत्पश्चात् तेतली पुत्र कनकध्वज राजा के पास गया। कनकध्वज ने तेतलीपुत्र को आते हुए देखा। उसका जरा भी आदर नहीं किया। न कोई महत्त्व ही दिया और न उठकर सम्मान ही किया। वह इस प्रकार अनादर भाव पूर्वक, पराङ्मुख होकर बैठा रहा।
- अमात्य तेतली पुत्र राजा कनकध्वज के सम्मुख हाथ जोड़े खड़ा रहा तो भी राजा ने उसका जरा भी आदर सम्मान नहीं किया। वह मुंह को दूसरी ओर किए चुपचाप बैठा रहा।
मारेहिइ तिकट्ठ भाए तत्थ (य) जाव साणय २ पच्चासक्कइ २ ता तमव आसखध दुरुहेइ २ त्ता तेयलिपुर मज्झ-मज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
शब्दार्थ - अवज्झाए - दुर्भाव युक्त, कु-मारेण - कुत्सित-वीभत्स मृत्यु से।
भावार्थ - तत्पश्चात् तेतली पुत्र कनकध्वज राजा के पास गया। कनकध्वज ने तेतलीपुत्र को आते हुए देखा। उसका जरा भी आदर नहीं किया। न कोई महत्त्व ही दिया और न उठकर सम्मान ही किया। वह इस प्रकार अनादर भाव पूर्वक, पराङ्मुख होकर बैठा रहा।
- अमात्य तेतली पुत्र राजा कनकध्वज के सम्मुख हाथ जोड़े खड़ा रहा तो भी राजा ने उसका जरा भी आदर सम्मान नहीं किया। वह मुंह को दूसरी ओर किए चुपचाप बैठा रहा।
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