Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र sccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccocx णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तं मा णं तुम देवाणुप्पिया! इमं सालइयं जाव आहारेसि मा णं तुमं अकाले चेवं जीवियाओ ववरोविज्जसि। तं गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! इमं सालइयं एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले परिट्टवेहि २ ता अण्णं फासुयं एसणिज्जं असणं ४ पडिगाहेत्ता आहारं आहारेहि।
___ भावार्थ - स्थविर धर्मघोष ने उस घृत पूरित तूंबे की गंध से अभिभूत दुष्प्रभावित होकर उसकी एक बूंद हाथ में ली एवं चखा। उन्होंने जाना कि यह तूंबा तीखा, खारा, कडुआ, अभोज्य एवं विषभूत है। अतः उन्होंने धर्मरुचि अनगार से इस प्रकार कहा - देवानुप्रिय! इस घृतलिप्त तूंबे को यदि तुम खा लेते हो तो अकाल में ही जीवन से हाथ धोना पड़ेगा। देवानुप्रिय! तुम इस तूंबे का आहार कर अकाल में ही मौत के ग्रास मत बनो। ..
देवानुप्रिय! जाओ, इस शाक को एकांत, निर्जीव भूमि में परठ दो तथा दूसरा प्रासुक, एषणीय आहार-पानी-खाद्य-स्वाद्य ग्रहण कर, आहार करो।
(१४) तए णं से धम्मरुई अणगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्ते संमाणे धम्मघोसस्स थेरस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता सुभूमिभागओ उज्जाणाओ अदूरसामंते थंडिल्लं पडिलेहेइ २ ता तओ सालइयाओ एगं बिदुगं गहेइ २ ता थंडिलंसि णिसिरइ।
भावार्थ - स्थविर धर्मघोष द्वारा यों कहे जाने पर अनगार धर्मरुचि वहाँ से निकले। सुभूमिभाग उद्यान के निकट एक भू भाग का प्रतिलेखन किया और वहाँ इस शाक की एक बूंद को डाला। हिंसा-भय से स्वदेह में परिष्ठापन
(१५) तए णं तस्स सालइस्स तित्तकडुयस्स बहुणेहावगाढस्स गंधेणं बहुणि पिपीलिगासहस्साणि पाउन्भू० जा जहा य णं पिपीलिगा आहारेइ सा तहा अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जइ। तए णं तस्स धम्मरुइस्स अणगारस्स इमेयारूवे
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