Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१५८
'ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र saccccccccccccccccee
HD0050CRIDEODOOR - भावार्थ - सार्थवाह जिनदत्त ने एक दिन उत्तम तिथि, करण, नक्षत्र एवं मुहूर्त में प्रचुर मात्रा में चतुर्विध आहार तैयार करवाए। मित्र स्वजातीयजन, पारिवारिकजन, संबंधी एवं परिजन वृंद को आमंत्रित किया यावत् उन्हें भोजन कराया, सम्मानित किया।
अपने पुत्र सागर को स्नानादि करवाकर सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। उसे एक हजार पुरुषों द्वारा वहनीय शिविका पर आरूढ किया यावत् मित्र, पारिवारिक आदि से घिरा हुआ अत्यंत वैभव और ठाठ बाट के साथ अपने घर से निकला। चंपानगरी के बीचोंबीच होता हुआ सागरदत्त सार्थवाह के घर पहुंचा। अपने पुत्र सागर को शिविका से उतारा और सागरदत्त सार्थवाह के यहाँ ले आया।
सुकुमालिका एवं सागर का पाणिग्रहण
तए णं से सागरदत्ते स० विपुलं असणं ४ उवक्खडावेइ २ त्ता जाव सम्माणेत्ता सागरं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धिं पट्टयंसि. दुरूहावेइ २ त्ता सेयापीतएहिं कलसेहिं मजावेइ २ ता होमं करावेइ २ त्ता सागरं दारयं सूमालियाए दारियाए पाणिं गेण्हावेइ।
भावार्थ - सार्थवाह सागरदत्त ने प्रचुर मात्रा में अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य तैयार करवाए यावत् जिनदत्त आदि सभी का सम्मान किया। सागर और सुकुमालिका को एक साथ पाटे पर बिठाया। जल से मार्जन-अभिषेक करवाया, हवन करवाया। ये सब संपादित कर सागर का सुकुमालिका के साथ पाणिग्रहण-हस्तमिलाप करवाया।
(४६) तए णं सागरदारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफासं पडिसंवेदेइ से जहाणामए असिपत्तेइ वा जाव मुम्मुरेइ वा, एत्तो अणि?तराए चेव पाणिफासं संवेदेइ। तए णं से सागरए अकामए अवसव्वसे तं मुहुत्तमित्तं संचिट्ठ। .
शब्दार्थ - पाणिफासं - हस्तस्पर्श, मुम्मुरेइ - अग्निकणयुक्त भस्म। भावार्थ - श्रेष्ठी पुत्र सागर ने ज्यों ही सुकुमालिका के हाथ का स्पर्श किया, उसे ऐसा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org