Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र GaaaaaEERICRORECEBOOcccccidcccccOOOOOOOOOOOOOOK त्ता णागसिरी माहणी एवं वयासी - हं भो णागसिरी! अपत्थिय पत्थिए! दुरंतपंतलक्खणे! हीणपुण्ण चाउद्दसे ! धिरत्थु णं तव अधण्णाए अपुण्णाए जाव णिंबोलियाए जाए णं तुमे तहारूवे साहू साहुरूवे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव ववरोविए उच्चावयाहिं अक्कोसणाहिं अक्कोसंति उच्चावयाहिं उद्धसणाहिं उद्धंसेंति उच्चावयाहिं णिन्भत्थणाहिं णिब्भत्थंति उच्चावयाहिं णिच्छोडणाहिं णिच्छोडेंति तज्जेंति तालेंति तज्जेत्ता तालेत्ता सयाओ गिहाओ णिच्छुभंति।।
- शब्दार्थ - दुरंतपंतलक्खणे - घोर कुलक्षणी, हीणपुण्ण चाउद्दसे. - पुण्य रहित. कृष्णा चतुर्दशी के दिन जन्मी हुई, उसणाहिं - फटकार, णिब्भत्थणाहिं - निर्भत्सना, णिच्छोडणाहिंघर से निकल जाने के रोष पूर्ण वचनों से।
भावार्थ - उन तीनों ब्राह्मण बंधुओं ने बहुत से लोगों से यहं सुना तो वे अत्यंत क्रुद्ध होते हुए यावत् तमतमाते हुए जहाँ नागश्री थी, वहाँ आए और बोले -
__ मौत को चाहने वाली! घोर कुलक्षणी! पुण्य हीन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में जन्मीं नागश्री! तुम्हें धिक्कार है। तुम बड़ी ही अधन्य, अपुण्य और दुर्भाग्ययुक्त हो। निंबोली के समान कटुतापूर्ण हो। तुमने साधुत्व के सजीव प्रतीक-तपस्वी मुनि को मासखमण के पारणे में कडुवा तूंबा बहरा कर यावत् उनके प्राण हर लिए। उन्होंने कठोर वचनों द्वारा इस पर आक्रोश करते हुए, उसे फटकारते हुए, उसकी निर्भत्सना करते हुए, घर से निकल जाने की धमकियाँ देते हुए उसे तर्जित और ताड़ित किया और घर से निकाल दिया। ..
(२८) ___ तए णं सा णागसिरी सयाओ गिहाओ णिच्छूढा समाणी चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणेणं हीलिज्जमाणी खिंसिज्जमाणी प्रिंदिज्जमाणी गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पव्वहिज्जमाणी धिक्कारिज्जमाणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा णिलयं वा अलभमाणी २. दंडीखंडणिवसणा खंडमल्लयखंडघडगहत्थगया फुट्टहडाहडसीसा मच्छियावडगरेणं अण्णिज्जमाणमग्गा गेहंगिहेणं देहं बलियाए वित्तिं कप्पेमाणी विहरइ।
शब्दार्थ - पव्वहिज्जमाणी - लकड़ी आदि से पीटी जाती हुई, दंडीखंडणिवसणा - टुकड़ों
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