Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
aaaaXXXXXXXXXXXX
शब्दार्थ - सत्थवज्झा शस्त्र द्वारा मृत्यु प्राप्त, दाहवक्कंतीए - दाह-जलन से पीड़ित । भावार्थ - उसके पश्चात् वह उस नरक से निकल कर मछलियों की योनि में उत्पन्न हुई । वहाँ शस्त्र द्वारा आहत, विद्ध होती हुई अत्यंत दाह पूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुई। वह नीचे सातवीं पृथ्वी-सातवीं नरक भूमि में उत्कृष्टतः तैंतीस सागरोपम स्थिति युक्त नारकों में नारक के रूप में उत्पन्न हुई।
१५२
(३१)
सा णं तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चंपि मच्छेसु उववज्जइ । तत्थ वि य णं सत्थवज्जा दाहवक्कंतीए दोच्चंपि अहे सत्तमाए पुढवीए उक्कोसं तेत्तीस सागरोवमट्ठिइएसु णेरइएसु उववज्जइ ।
भावार्थ - तदनंतर वह नागश्री वहाँ से सातवीं नरक भूमि से निकलकर फिर मछलियों की योनि में उत्पन्न हुई। वहाँ भी उसने शस्त्र द्वारा आहत, विद्ध होकर दाहपूर्वक प्राण त्यागे । पुनः अधस्तन सातवीं नरक भूमि में उत्पन्न हुई, जहाँ नारकों की उत्कृष्टतम आयु तैतीस सागरोपम है।
(३२)
सा णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता तच्वंपि मच्छेसु उववण्णा । तत्थ वि य णं सत्थवज्झा जाव कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं० ।
भावार्थ - वहाँ से यावत् निकलकर तीसरी बार भी वह मछली की योनि में पैदा हुई । वहाँ उसका पूर्वोक्त रूप में वध हुआ यावत् वह मृत्यु को प्राप्त कर दूसरी बार छठी नारक भूमि में उत्पन्न हुई जहाँ के नारकों का उत्कृष्ट आयुष्य बाईस सागरोपम है।
(३३)
तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता उरएसु एवं जहा गोसाले तहा णेयव्वं जाव रयणप्पभाए (पुढवीओ उव्वट्टित्ता) सत्तसु उववण्णा । तओ उव्वट्टित्ता जाव इमाई खहयर विहाणाई जाव अदुत्तरं च णं खरबायरपुढविकाइयत्ताए तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org