Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - संलेखना पूर्वक समाधिमरण १४५ జరిగిందిదిలందిందిందించిందిదిండిగిందిదిగిందించింది पर्यंत इस शरीर का व्युत्सर्जन-परित्याग करता हूँ। इस प्रकार कह कर आलोचना एवं प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्वक देह त्याग किया।
(१६) तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुइं अणगारं चिरंगयं जाणित्ता समणे णिगंथे सद्दावेंति २ त्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स मासखमणपारणगंसि सालइयस्स जाव णेहावगाढस्स णिसिरणट्ठयाए बहिया णिग्गए चिरा(वे)इ, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेह।
शब्दार्थ - चिरावेइ - देर हो रही है।
भावार्थ - तदनंतर स्थविर धर्मघोष ने 'अनगार धर्मरुचि को गए हुए बहुत समय हो गया है' यह सोचकर निर्ग्रन्थ श्रमणों को बुलाया और उनसे कहा - देवानुप्रियो! धर्मरुचि अनगार को (आज) मासखमण के पारणे के दिन कडुवे तूंबे का व्यंजन भिक्षा में मिला यावत् उस घृतलिप्त तूंबे को परठने हेतु वे बाहर गए। उनको गए बहुत देर हो गई है। देवानुप्रियो! तुम जाओ धर्मरुचि अनगार की सब ओर खोज-खबर करो, तलाश करो।
(२०) _तए. णं ते समणा णिग्गंथा जाव पडिसुणेति २ ता धम्मंघोसाणं थेराणं अंतियाओ पडिणिक्खमंति २ ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिल्लं तेणेव उवागच्छंति २ ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगं णिप्पाणं णिच्चेढं जीवविप्पजढं पासंति २ ता हा हा! अहो! अकज्जमि तिकटु धम्मरुइस्स अणगारस्स परिणिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति० धम्मरुइस्स आयारभंडगं गेण्हंति २ त्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छंति २ त्ता गमणागमणं पडिक्कमंति २ त्ता एवं वयासी -
शब्दार्थ - णिप्पाणं - निष्प्राण, परिणिव्वाणवत्तियं - मरणोपरांत करणीय। भावार्थ - श्रमण निर्ग्रन्थों ने यावत् स्थविर भगवंत के कथन को यावत्.स्वीकार किया।
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