Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SEEEEEECccccccccccccxccccccccccccccccccccccccccx
संलेखना पूर्वक समाधिमरण
. (१७) तए णं से धम्मरुई अणगारे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार परक्कमे अधारणिज्जमितिकटु आयारभंडगं एगंते ठवेइ २ ता थंडिल्लं पडिलेहेइ २ त्ता दब्भसंथारगं संथारेइ २ त्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ २ ता पुरत्थाभिमुहे संपलियं
कणिसण्णे करयल परिग्गहियं एवं वयासी - ____शब्दार्थ - संपलियंकणिसण्णे - संपल्यंकनिषण्ण-पर्यंकासन में सन्निविष्ट।
भावार्थ - तब धर्मरुचि अनगार अस्थिर, उठने-बैठने की शक्ति से रहित, बलहीन, अन्तःशक्ति रहित तथा पौरुष-पराक्रम विहरित हो गये। उन्होंने अनुभव किया कि अब यह शरीर टिक नहीं पाएगा। तब उन्होंने मुनि आचार में प्रयुक्त होने वाले उपकरण एक स्थान पर रख दिये। वैसा कर उन्होंने स्थण्डिल भूमि का प्रतिलेखन किया। वैसा कर डाभ का आसन बिछाया एवं उस पर पर्यंकासन में आसीन हुए। फिर मस्तक पर अंजलि बांधकर इस प्रकार कहा।
(१८) णमोत्थुणं णं अरहंताणं जाव संपत्ताणं णमोत्थुणं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं पुव्विं पि णं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जाज्जीवाए जाव परिग्गहे इयाणिं पि णं अहं तेसिं चेव भगवंताणं अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जहा खंदओ जाव चरिमेहिं उस्सासेहिं वोसिरामि - त्तिक? आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालगए।
भावार्थ - अरहंत भगवंतों को यावत् सिद्धि प्राप्त सिद्ध भगवंतों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक स्थविर धर्मघोष को नमस्कार हो। मैंने पहले भी स्थविर धर्मघोष के पास समस्त प्राणातिपात यावत् परिग्रह के प्रत्याख्यान लिए थे। अब भी मैं उन्हीं स्थविर भगवंत की साक्षी से समस्त प्राणातिपात यावत् परिग्रह का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करता हूँ। (यहाँ प्रत्याख्यान विषयक वर्णन स्कंदक मुनि की तरह योजनीय है) यावत् मैं अंतिम श्वासोच्छ्वास
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