Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - विषाक्त तूंबे को परठने का आदेश
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उट्ठेइ २ त्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छ्इ २ त्ता तं सालइयं तित्तकडुयं च बहुणे (हं) हावगाढं धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहंसि सव्वमेव णिसिर । शब्दार्थ - णिसिर णट्टयाए निकाल देने हेतु, भत्तघरे - रसोईघर, पडिग्गहंसि - पात्र में । भावार्थ तब नागश्री ने धर्मरुचि अनगार को आते हुए देखा। उसने घृत एवं मसालों के साथ बनाए हुए कडुवे तूंबे को निकालने का अवसर जाना एवं प्रसन्नता पूर्वक उठी। वह अपने रसोईघर में गई और तिक्त, अतिघृत युक्त तूंबा मुनि के पात्र में सारा का सारा डाल दिया ।
(१२)
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तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमितिकट्टु णागसिरीए माहणीए गिहाओ पडिणिक्खमड़ २ त्ता चंपाए णयरीए मज्झं मज्झेणं पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता ( जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छइ २) धम्मघोसस्स अदूरसामंते अण्णपाणं पडि ( दंसे) लेहेइ २ ता अण्णपाणं करयलंसि पडिदंसे ।
शब्दार्थ - अहापज्जत्तं - यथा पर्याप्त आहार के लिए पर्याप्त ।
भावार्थ तब धर्मरुचि अनगार उसे अपने आहार के लिए पर्याप्त मान कर नागश्री ब्राह्मणी के घर से निकले । चंपा नगरी के बीचों-बीच होते हुए सुभूमिभाग उद्यान में स्थविर धर्मघोष के पास आए। उनसे न अधिक दूर न अधिक निकट होते हुए ईर्यापथिक प्रतिक्रमण किया एवं आहार पानी का प्रतिलेखन किया एवं हाथ में लेकर स्थविर भगवंत को दिखलाया।
विषाक्त तूंबे को परठने का आदेश
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(१३)
तए णं ते धम्मघोसा थेरा तस्स सालइयस्स णेहावगाढस्स गंधेणं अभिभूया समाणा तओ सालइयाओ णेहावगाढाओ एगं बिदुगं गहाय करयलंसि आसादेंति तित्तगं खारं कडुयं अखज्जं अभोज्जं विसभूयं जाणित्ता धम्मरुई अणगारं एवं वयासी - जइ णं तुमं देवाणुप्पिया! एवं सालइयं जाव णेहावगाढं आहारेसि तो
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