Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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प्रतिबोध का युक्तियुक्त प्रयास
(४३) तए णं से पोट्टिले देंवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं केवलि पण्णत्ते धम्मे संबोहेइ णो चेव णं से तेयलिपुत्ते संबुज्झइ। तए णं तस्स पोट्टिल देवस्स इमेयारूवे अज्झथिए० एवं खलु कणगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ जाव भोगं च संवडे। तए णं से तेयली पुत्ते अभिक्खणं २ संबोहिज्जमाणे वि धम्मे णो संबुज्झइ। तं सेयं खलु कणगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामेत्तए -त्तिकट्ठ एवं संपेहेइ २ त्ता कणगज्झयं । तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामेइ।
भावार्थ - तदनंतर पोट्टिलदेव ने तेतली पुत्र को बार-बार केवलिप्रज्ञप्त धर्म का प्रतिबोध दिया किन्तु तेतली पुत्र संबुद्ध नहीं हुआ। तब पोट्टिल देव के मन में ऐसा विचार आया राजा- कनकध्वज तेतली पुत्र का आदर करता है, सत्कार सम्मान करता है। उसके सुखोपभोग की सामग्री को बढाता है। इसलिए तेतलीपुत्र बार-बार समझाए जाने पर भी धर्म को नहीं समझ पा रहा है, उस ओर आकृष्ट नहीं हो रहा है। इसलिए यही श्रेयस्कर है कि मैं राजा कनकध्वज को तेतलीपुत्र के विपरिणामित-विरुद्ध कर दूं। यों सोच कर उसने राजा को तेतली पुत्र से विमुख कर दिया।
(४४) .. तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं ण्हाए जाव पायच्छित्ते आसखंधवरगए बहूहिं पुरिसेहिं (सद्धिं) संपरिवुडे साओ गिहाओ णिग्गच्छइ २ ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - तदनंतर तेतलीपुत्र दूसरे दिन स्नान कर यावत् प्रायश्चित्त-अमंगल निवारण मूलक कृत्य संपादित कर घोड़े पर सवार होकर बहुत से पुरुषों से घिरा हुआ अपने घर से निकला और राजा कनकध्वज जहाँ था, उसी ओर रवाना हुआ।
(४५) - तए णं तेयलिपुत्तं अमच्चं जे जहा बहवे राईसरतलवर जाव पभियओ पासंति
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