Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र saccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccsex
तेतलीपुत्र ने जब यह जाना कि राजा कनकध्वज मेरे प्रति विपरीत परिणाम युक्त है, मुझ पर नाराज है। यह जान वह भयभीत यावत् उद्विग्न हो गया और मन ही मन सोचने लगा-राजा कनकध्वज मुझसे रूष्ट हैं। मेरे प्रति उसके मन में हीन भाव है। वह मेरे संबंध में बुरा चिंतन लिए हुए है। इसलिए न जाने राजा मुझे कब कुमौत मरवा दे? यों विचार कर वह बहुत ही भयभीत यावत् त्रस्त हो गया यावत् वह धीरे-धीरे वापस लौट पड़ा, घोड़े पर सवार हुआ एवं तेतली नगर के बीचों बीच से होता हुआ अपने घर की ओर लौट पड़ा। ....
(४७)
तए णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर जाव पासंति ते तहा णो आढायंति णो परियाणंति णो अन्भुटुंति णो अंजलिं० इट्टाहिं जाव णो संलवंति णो पुरओ य पिट्ठओ य पासओ (य मग्गओ य) समणुगच्छंति। तए णं तेयलिपुत्ते जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। जा वि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भंवइ तंजहा - दासेइ वा पेसेइ भाइल्लएइ वा सा वि य णं णो आढाइ ३। जा वि य से अभिंतरिया परिसा भवइ तंजहा - पियाइ वा मायाइ वा,जाव सुण्हाइ वा सा वि य णं णो आढाइ ३ तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासघरे जेणेव सए सयणिजे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सयणिजंसि णिसीयइ २त्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं सयाओ गिहाओ णिग्गच्छामि तं चेव जाव अभिंतरिया परिसा णो आढाइ णो परियाणाइ णो अब्भुढेइ।
शब्दार्थ - भाइल्लएइ - हाली-कृषि कर्मकारी सेवक।
भावार्थ - तब तेतली पुत्र को सामंत यावत् विशिष्ट राजपुरुषों ने देखा तो उन्होंने उसे कोई आदर या महत्त्व नहीं दिया। न उसके सामने उठे, न उसको हाथ जोड़े न इष्ट यावत् मधुर वाणी से बात की तथा न आगे-पीछे-अगल-बगल में चले ही।
तब तेतली पुत्र अपने घर में आया। उसकी बाहरी परिषद्-घर के बाहरी कार्य व्यवस्था में संलग्न दास, प्रेष्य तथा हाली आदि में से किसी ने उसका आदर नहीं किया। भीतरी परिषद् पिता, माता, पुत्र यावत् पुत्र वधू आदि ने भी उसका आदर नहीं किया और न सम्मान में कोई उठा ही।
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