Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भावार्थ - तत्पश्चात् जिनपालित यावत् समय बीतने पर शोक रहित होकर विपुल कामभोग भोगता हुआ रहने लगा ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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(६६)
तेणं काणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे जाव धम्मं सोच्चा पव्वइए एक्कारसंगवीमासिएणं भत्तेणं जाव सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे दो सागरोवमाई ठिई प०, महाविदेहे वासे सिज्झिहि जाव अंतं काहि ।
भावार्थ उस काल, उस समय भगवान् महावीर स्वामी चंपानगरी में समवसृत हुए, पधारे यावत् निपालित ने उनका धर्मोपदेश सुना, वह दीक्षित हुआ । ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। अंत में एक मास का अनशन कर ६० भक्तों का छेदन कर यावत् सौधर्म कल्प में देव - के रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी दो सागरोपम की स्थिति कही गई है, यावत् देवलोक से च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा, सिद्धि प्राप्त करेगा ।
(६७)
एवामेव समणाउसो । जाव माणुस्सए कामभोगे णो पुणरवि आसाइ से णं जाव वीईवइस्सइ जहा व से जिणपालिए ।
-
काम
भावार्थ आयुष्यमान् श्रमणो! यावत् जो आचार्य, उपाध्याय से प्रव्रजित होकर पुनः -भोगों की आशा, अभीप्सा या कामना नहीं करता वह इसी प्रकार यावत् जिनपालित की तरह संसार सागर को पार करेगा।
(६८)
एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं णवमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्तिबेमि ।
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भावार्थ - हे आयुष्यमान् जंबू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ, प्ररूपित किया है। जैसा मैंने श्रवण किया है, उसी प्रकार तुम्हें कह रहा हूँ, सुधर्मा स्वामी ने जंबू स्वामी से इस प्रकार कहा ।
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