Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපු आसवाहणियाए णिज्जायमाणे तस्स फरिहोदगस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं जियसत्तू राया तस्स फरिहोदगस्स असुभेणं गंधेणं अभिभूए रमाणे सएणं उत्तरिजगेणं आसगं पिहेइ एगंतं अवक्कमइ २ त्ता बहवे ईसर जाव पभिइओ एवं वयासी-अहो णं देवाणुप्पिया! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं ४ से जहाणामए अहिमडेइ वा जाव अमणामतराए चेव।
शब्दार्थ - आसवाहणियाए - घुड़सवारी के लिए, णिजायमाणे - निकलता हुआ। .. भावार्थ - एक बार किसी समय राजा जितशत्रु स्नानादि कर उत्तम घोड़े पर सवार हुआ। बहुत से भटों, योद्धाओं, सामंतों के साथ घुड़ सवारी के लिए निकला। उसी क्रम में वह उस (पूर्ववर्णित) खाई के पास से गुजरने लगा। राजा ने उसे खाई की दुर्गन्ध से घबराकर उत्तरीय वस्त्र से अपना नाक ढक लिया। एकांत में जाता हुआ वह बहुत से अपने साथ चलते हुए, उन विशिष्टजनों से बोला-देवानुप्रियो! इस खाई का पानी वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श में बड़ा ही अमनोज्ञ . है, जैसे मरे हुए सांप की यावत् गाय आदि की दुर्गन्ध से भी अधिकतर दुर्गन्ध इसमें है।
(११) _ तए णं ते बहवे राईसर जाव पभियओ एवं वयासी-तहेव णं तं सामी! जं णं तुन्भे एवं वयह - अहो णं इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं ४ से जहाणामए अहिमडेइ वा जाव अमणामतराए चेव।
भावार्थ - राजा का कथन सुनकर बहुत से अधीनस्थ राजा, वैभवशालीजन यावत् सार्थवाह आदि इस प्रकार बोले-स्वामी! आप जैसा कहते हैं, यह खाई का पानी वैसा ही वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से अमनोज्ञ है। वह साँप यावत् गाय आदि के मृतकलेवर से भी अधिक दुर्गन्ध युक्त और अमनोज्ञ है।
(१२) तए णं से जियसत्तू सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धी! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं ४ से जहाणामए अहिमडेइ वा जाव अमणामतराए चेव। तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जाव तुसिणीए संचिट्ठइ।
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