Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र cococco
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जिस प्रकार वे सब लोग उस शाला में अनुप्रविष्ट हो गए थे, उसी प्रकार वैक्रिय लब्धि जनित देव ऋद्धि द्युति आदि उस देव के शरीर में अनुप्रविष्ट हो गई।
(५)
दद्दुरेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी ३ किण्णा लद्धा जाव अभिसमण्णागया? भावार्थ गणधर गौतम ने भगवान् से पुनः जिज्ञासा की- हे भगवन्! दर्दुर देव ने यह दिव्य ऋद्धि किस प्रकार उपलब्ध की यावत् प्राप्त की, स्वायत्त की ।
नन्द मणिकार (६)
एवं खलु गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे २ भारहेवासे रायगिहे गुणसिलए चेइए सेणिए राया । तत्थ णं रायगिहे णंदे णामं मणियार सेट्ठी परिवसई अड्डे दित्ते० ।
भावार्थ - हे गौतम! जंबूद्वीप में, भारत वर्ष में राजगृह नामक नगर था, श्रेणिक वहाँ का राजा था। वहाँ राजगृह नगर में नंद नामक मणिकार श्रेष्ठी निवास करता था । वह धनाढ्य दीप्तिमान यावत् सब द्वारा आदरणीय था ।
(७)
तेणं काणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! समोसढे परिसा णिग्गया सेणिए वि राया णिग्गए। तए णं से णंदे मणियार सेट्ठी इमीसे कहाए लट्ठे समाणे पहाए पायचारेणं जाव पज्जुवासइ । णंदे धम्मं सोच्चा समणोवासए जाए। तए णं अहं रायगिहाओ पडिणिक्खंते बहिया जणवय विहारं विहरामि ।
शब्दार्थ - पायचारेणं - पैदल चलकर, पडिणिक्खंते - प्रतिनिष्क्रांत हुआ।
भावार्थ - गौतम! उस काल, उस समय मैं गुणशील नामक चैत्योद्यान में आया । वंदन, नमन हेतु परिषद् आयी, श्रेणिक राजा भी आया । मणिकार श्रेष्ठी नंद ने मेरे आगमन का समाचार सुना। उसने स्नानादि नित्य कर्म किए यावत् वह सन्निधि में आया, पर्युपासना की। फिर वह मुझसे धर्मोपदेश सुनकर श्रमणोपासक बना उसने श्रावक व्रत स्वीकार किए। तत्पश्चात् मैंने राजगृह नगर से विहार किया एवं जनपदों में विचरणशील रहा।
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