Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मण्डुक (द१र) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - पाकशाला පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා रायगिहविणिग्गओ य तत्थ बहूजणो तेसु पुव्वण्णत्थेसु आसणसयणेसु संणिसण्णो य संतुयट्टो य सुणमाणो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ। . शब्दार्थ - अत्थुय पच्चत्थुयाइं - आसनों और बिछौनों पर बिछे हुए मृदुल वस्त्र तथा उन पर पुनः बिछे हुए पलंग पोस, णडा - नाटक अभिनय करने वाले, णट्टा - नृत्य करने वाले, भइ - धान्यादि के रूप में पारिश्रमिक, भत्त - भोजन, तालायरकम्मं - तालाचर कर्मताल आदि के आधार पर नाट्य प्रदर्शन, पुव्वण्णत्थेसु - पहले से रखे हुए, संतुयट्टो - लेट कर, साहेमाणो - परस्पर वार्तालाप करते हुए।
भावार्थ - उस चित्रशाला में नंद द्वारा बहुत से आसन और बिछौने लगाए गए थे, जिन पर कोमल आच्छादन और पलंग पोस लगे थे। वहाँ बहुत से नाटककार, नृत्यकार यावत् बहुत प्रकार के कलाकार जो भृति, भोजन और वेतन पर रखे गए थे, ताल आदि के आधार पर अपना कलाकृत्य प्रस्तुत करते ते। राजगृह नगर से मन बहलाने हेतु आने वाले लोग वहाँ पहले से ही रखे हुए आसनों, बिछौनों पर बैठते, लेटते, गानादि सुनते, नाटक देखते, परस्पर वार्तालाप करते हुए, सुख पूर्वक वहाँ समय बिताते थे।
पाकशाला
(१५) तए णं णंदे दाहिणिल्ले वणसंडे एगं महं महाणससालं करावेइ अणेगखंभ जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा विउलं असणं ४ उवक्खडेंति बहूणं समण-माहण-अतिही-किवण-वणीमगाणं परिभाएमाणा २ विहरंति। . शब्दार्थ - किवण - दरिद्र-कृपण, वणीमग - भिखारी।
भावार्थ - तदनंतर मणिकार श्रेष्ठी नंद ने दाहिनी ओर के वन खंड में बड़े रसोइघर का निर्माण करवाया। यह पाकशाला सैकड़ों खम्भों पर अवस्थित थी यावत् बहुत ही सुंदर थी। वहाँ बहुत से व्यक्तियों को भृति (जीविका), भोजन और वेतन पर रखा गया था, जो विपुल मात्रा में अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य तैयार करते थे तथा बहुत से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों और भिखारियों को परिभावित करते थे-देते रहते थे।
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