Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - भविष्य-कथन පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා
तिरियाणं चारित्तं, निवारियं अह य तो पुणो तेसिं। सुव्वइ बहुयाणं पि हु, महव्वयारोहणं 'समए॥१॥ न महव्वयसब्भावेवि, चरित्तपरिणामसंभवो तेसिं। न बहुगुणाणंपि जओ, केवलसंभूइपरिणामो॥२॥
अर्थात् - तिर्यंचों में यद्यपि चारित्र (सर्वविरति) के होने का आगम में निषेध किया गया है, फिर भी बहुत-से तिर्यंचों ने महाव्रत ग्रहण किये ऐसा सुना जाता है - आगमों में ऐसा उल्लेख देखा जाता है किन्तु महाव्रतों के सद्भाव में भी तिर्यंचों में चारित्र परिणाम (भाव चारित्र) संभव नहीं होता है। जैसे बहुत गुणों से सम्पन्न जीवों को भी सम्पूर्ण संबोधि का परिणाम (चारित्र सहित) मनुष्य के सिवाय उत्पन्न नहीं हो सकता है। यहाँ पर महाव्रतों का अर्थ-बड़े व्रत नियम समझना चाहिए। किन्तु अहिंसा आदि सर्वविरति रूप महाव्रत नहीं समझना चाहिए।
देव के रूप में उत्पत्ति
(३२) ___तए णं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए विमाणे उववाय सभाए ददुर देवत्ताए उववण्णे। एवं खलु गोयमा! ददुरेणं सा दिव्वा देविड्डी लद्धा ३।
भावार्थ - तदनंतर वह दर्दुर आयुष्य पूर्ण होने पर-मृत्युकाल आने पर देहत्याग कर, सौधर्म कल्प में, दर्दुरावतंसक नामक विमान में, उपपात सभा में, दर्दुर देव के रूप में उत्पन्न हुआ। हे गौतम! दर्दुर देव ने इस प्रकार वह दिव्य-देव ऋद्धि यावत् द्युति, वैभव प्राप्त किया।
भविष्य-कथन
(३३) ददुरस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। से णं ददुरे देवे० महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ जाव अंतं करेहिइ।
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