Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - सन्तति परिवर्तन की आयोजना
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(२२) एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेइ।अयं च णं दारए कणगरहस्स पुत्ते पउमावई अत्तए (तेणं) तण्णं तुमं देवाणुप्पिए! इमं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुव्वेणं सारक्खाहि य संगोवेहि य संवढेहि य। तए णं एस दारए उम्मुक्क बालभावे तव य मम य पउमावईए य आहारे भविस्सइ-त्तिकदृ पोट्टिलाए पासे णिक्खिवइ (२) पोटिलाओ पासाओ तं विणिहायमावण्णियं दारियं गेण्हइ २ ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ २ ता अंतेउरस्स अवदारेणं अणुप्पविसइ २ जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ २ ता पउमावईए देवीए पासे ठावेइ जाव पडिणिग्गए।
भावार्थ - देवानुप्रिये! राजा कनकरथ अपने राज्य और राष्ट्र में यावत् अत्यंत आसक्त हैं। वह पुत्रों को जन्म लेते ही विकलांग करवा देता है। यह बालक पद्मावती देवी की कोख से उत्पन्न हुआ, राजा कनकरथ का पुत्र है। देवानुप्रिये! तुम इस तथ्य को कनकरथ से गुप्त रखते हुए, इस बालक का संरक्षण, संगोपन, संवर्द्धन करो। यह शिशु बाल्यावस्था के बाद युवा हो जाने पर तुम्हारा, मेरा और रानी पद्मावती का आधारभूत होगा। यों कहकर उसने पोट्टिला के पार्श्व में उस शिशु को रख दिया एवं मृत कन्या को ले लिया। उसे अपने उत्तरीय से ढका एवं अंतःपुर. के उसी पीछे के दरवाजे से अन्दर प्रविष्ट हुआ। रानी पद्मावती के पास गया एवं मृत कन्या को उसके पार्श्व में रख दिया यावत् उसी गुप्त द्वार से वापस लौट गया।
(२३) तए णं तीसे पउमावईए अंगपडियारियाओ पउमावई देविं विणिहायमावण्णियं (च) दारियं पयायं पासंति २ त्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु सामी! पउमावई देवी मएल्लियं दारियं पयाया।
शब्दार्थ - अंगपडियारियाओ - अंग प्रतिचारिका-दासियाँ। • भावार्थ - तत्पश्चात् पद्मावती की दासियों ने उस मृत जन्मा कन्या को देखा। देखकर वे राजा कनकरथ के पास आई। हाथ जोड़े यावत् मस्तक पर अंजलि बांधे राजा से निवेदन कियास्वामी! रानी पद्मावती के मरी हुई कन्या जन्मी है।
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