Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
८६
Soc
PO००%
भगवान् महावीर स्वामी यावत् गुणशील चैत्य में पधारे हुए हैं। मैं जाऊँ और उनको वंदना करूँ यावत् ऐसा चिंतन कर वह नंदा पुष्करिणी से धीरे-धीरे बाहर आया । राजमार्ग पर पहुँचा वहाँ उत्कृष्ट दर्दुर गति से चलता हुआ, उस ओर जाने लगा ।
मारणान्तिक प्रत्यवाय
मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन संलेखना पूर्वक देह त्याग COOOOO
(३०)
इमं च णं सेणिए राया भंभसारे ण्हाए कयकोउय जाव सव्वालंकार विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लद्रामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरा० हयगयरह० महया भडचडगर० चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ । तए णं से ददुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अक्कंते समाणे अंतणिग्घाइए कए यावि होत्था ।
शब्दार्थ - अक्कंते- आक्रांत हुआ- कुचला गया, अंतणिग्घाइए - आंते बाहर निकल पड़ी। भावार्थ इधर राजा बिंबसार श्रेणिक ने स्नान किया। कौतुकमंगल यावत् प्रायश्चित्तादि नित्य कर्म किए। आभरणों से अलंकृत हुआ । हाथी पर सवार हुआ। उस पर कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र तना था । सफेद, उत्तम, चंवर डुलाए जा रहे थे । घोड़े, हाथी रथ तथा पदाति योद्धाओं की चतुरंगिणी सेना से वह घिरा हुआ मेरे चरण-वंदन हेतु शीघ्रतापूर्वक आ रहा था ।
इसी बीच वह मेंढक राजा श्रेणिक के एक युवा अश्व के बाएँ पैर से कुचल गया। उसकी आँतें बाहर निकल आईं।
-
संलेखना पूर्वक देह त्याग (३१)
तए णं से ददुरे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधारणिज्जमितिकट्टु एगंतमवक्कमइ० करयल जाव एवं वयासी - णमोत्थुणं अरहंताणं (भगवंताणं) जाव संपत्ताणं । णमोत्थुणं समणस्स ३ मम धम्मायरियस्स जाव संपाविउकामस्स । पुव्विंपि य णं मए समणस्स ३ अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जाव थूलए
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org