Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन तेतली पुत्र पोट्टिला पर मुग्ध
********¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪00:
आसवाहणियाए णिज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं
वीईवय |
भावार्थ
-
इधर अमात्य तेतली. पुत्र स्नान कर, उत्तम घोड़े पर सवार हुआ। वह बहुत सुभट समूह के साथ घुड़सवारी हेतु निकला । मार्ग में वह मूषिकारदारक नामक स्वर्णकार के घर के पास से गुजरा।
६५
. (७)
तणं से तेयलिपुत्ते अमच्चे मूसियारदारगगिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे २ पोट्टिलं दारियं उप्पिं पासायवरगयं आगासतलगंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणीं पासइ २ त्ता पोट्टिलाए दारियाए रूवे य ३ जाव अज्झोववण्णे कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयांसी-एस णं देवाणुप्पिया! कस्स दारिया किं णामधेज्जा वा? तए णं कोडुंबिय पुरिसे तेयलिपुत्तं एवं वयासी एस णं सामी ! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला णामं दारिया रूवेण य जाव सरीरा ।
भावार्थ - मूषिकारदारक के घर के निकट से जाते हुए अमात्य तेतली पुत्र ने प्रासाद की छत पर, अगासी में, सोने की गेंद से क्रीड़ा करती हुई, कन्या पोट्टिला को देखा। देखते ही उसके रूप, यौवन तथा लावण्य उसके मन में समा गये। उसने अपने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा-' -'देवानुप्रियो ! यह किसकी कन्या है ? इसका क्या नाम है?'
तब कौटुंबिक पुरुषों ने कहा
'स्वामी! यह मूषिकारदारक नामक स्वर्णकार की पुत्री भद्रा की आत्मजा है। इसका नाम पोट्टिला यावत् वह अत्यंत रूपवती है।'
(5)
-
Jain Education International
तणं से तेयलिपुत्ते आसवाहणियाओ पडिणियत्ते समाणे अब्भिंतरठाणिजे पुरिसे सद्दावेड़ २ त्ता एवं वयासी- गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कलायस्स २ धूयं भद्दाए अत्तयं पोहिलं दारियं मम भारियत्ताए वरेह । तए णं ते अब्भिंतरठाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हट्ठ० करयल० तहत्त जेणेव कलायस्स २ गिहे तेणेव उवागया । तए णं से कलाए मूसियारदारए पुरिसे
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org