Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उदकज्ञात नामक़ बारहवां अध्ययन प्रयोगजनित पुद्गल परिणमन ccccccc
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तए णं जियसत्तू एक्कारस अंगाई अहिज्जइ बहूणि वासाणि परियाओ पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धे । तए णं सुबुद्धी एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि जाव सिद्धे ।
भावार्थ - राजा जितशत्रु ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बहुत वर्षों तक साधु पर्याय अंत में एक मास की संलेखना पूर्वक सिद्धि - मुक्ति प्राप्त की ।
का पालन कर,
अमात्य सुबुद्धि ने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन किया एक मासिक संलेखना कर, वह भी सिद्ध - मुक्त हुआ ।
(३०)
एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं बारसमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि ।
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भावार्थ - हे जंबू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने बारहवें ज्ञाता अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादित किया है। जैसा मैंने सुना वैसा ही कहा है।
गाहा - मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्तावि पाणिणो विगुणा ।
फरिहोदगं व गुणिणो हवंति वरगुरु पसायाओ ॥१॥ ॥ बारसमं अज्झयणं समत्तं ॥
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शब्दार्थ - पावपसत्ता पाप प्रसक्त- पापों में विशेष रूप से लिप्त, विगुणा - गुण रहित, पसायाओ - प्रसाद - कृपा से ।
भावार्थ - जिनका मन मिथ्यात्व से मूढ बना हुआ है, जो पाप कार्यों में लगे रहते हैं, गुण रहित हैं- ऐसे प्राणी भी, खाई के पानी की तरह उत्तम संयोग से उत्तम गुरु की कृपा से गुणी हो जाते हैं।
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॥ बारहवाँ अध्ययन समाप्त ॥
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