Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उदकज्ञात नामक बारहवां अध्ययन - प्रयोगजनित पुद्गल परिणमन SECcccccccccccccccccccccccccccccxicaOCEEKSEEEEEER ___वे बहुत से राजा, सामन्त यावत् विशिष्ट दरबारी लोग यों बोले-स्वामी! जैसा आप कहते हैं, यह वैसा ही अत्यंत सुखप्रद है। प्रयोगजनित पुद्गल परिणमन
(२०) तए णं जियसत्तू राया पाणियपरियं सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-एस णं तुन्भे देवाणुप्पिया! उदगरयणे कशे आसाइए ? तए णं से पाणियघरिए जियसत्तुं एवं वयासी-एस णं सामी! मए उदगरयणे सुबुद्धिस्स अंतियाओ आसाइए। तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धि ! केणं कारणेणं अहं तव अणिढे ५ जेणं तुमं मम कल्लाकल्लिं भोयणवेलाए इमं उदगरयणं ण उवट्ठवेसि? तं एस (तए) णं तुमे देवाणुप्पिया! उदगरयणे कओ उवलद्धे? तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एस णं सामी! से फरिहोदए। तए णं से जियसत्तू सुबुद्धिं एवं वयासी-केण कारणेणं सुबुद्धी! एस से फरिहोदए? तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एवं खलु सामी! तुम्हे तया मम एवमाइक्खमाणस्स ४ एयमटुं णो सद्दहह तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए०अहो णं जियसत्तू संते जाव भावे णो सद्दहइ णो पत्तियइ णो रोएइ। तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रणो संताणं जाव सब्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमढे उवाइणावेत्तए। एवं संपेहेमि २ ता तं चेव जाव पाणियघरियं सद्दावेमि २ ता एवं वदामि-तुमं णं देवाणुप्पिया! उदगरयणं जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेहि। तं एएणं कारणेणं सामी! एस से फरिहोदए।
शब्दार्थ - सद्दहइ - श्रद्धा की-विश्वास किया।
भावार्थ - इसके पश्चात् राजा जितशत्रु ने जलगृह के अधिकारी को बुलाया और पूछादेवानुप्रिय! यह उत्तम जल तुम्हें कहाँ से मिला? जलगृह अधिकारी ने राजा से निवेदन कियास्वामी! यह श्रेष्ठ जल मुझे अमात्य सुबुद्धि के पास से प्राप्त हुआ। तब राजा जितशत्रु ने सुबुद्धि अमात्य को बुलाया और कहा - सुबुद्धि! मैं तुम्हारे लिए किस कारण से अकांत, अनिष्ट,
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