Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා ज्ञान प्राप्त किया और श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रासुक-एषणीय दान देता हुआ रहने लगा, धार्मिक जीवन जीने लगा।
विवेचन - श्रावकपन अमुक कुल में उत्पन्न होने जन्म लेने से नहीं आता। वह जातिगत विशेषता भी नहीं है। प्रस्तुत सूत्र स्पष्ट निर्देश करता है कि श्रावक होने के लिए सर्वप्रथम वीतराग प्ररूपित तत्त्वस्वरूप पर श्रद्धा होनी चाहिए। वह श्रद्धा भी ऐसी अचल, अटल हो कि मनुष्य तो क्या, देव भी उसे विचलित न कर सके। मुमुक्षु को जिनागम प्ररूपित नौ तत्त्वों का ज्ञान अनिवार्य है। उसे इतना सत्त्वशाली होना चाहिए कि देवगण डिगाने का प्रयत्न करके थक जाएं, पराजित हो जाएँ, किन्तु वह अपने श्रद्धान और अनुष्ठान से डिगे नहीं। ..
मनुष्य जब श्रावकवृत्ति स्वीकार कर लेता है, तब उसके आन्तरिक जीवन बाह्य व्यवहार में भी पूरी तरह परिवर्तन आ जाता है। उसका रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल आदि समस्त व्यवहार बदल जाता है। श्रावक मानो उसी शरीर में रहता हुआ भी नूतन जीवन प्राप्त करता है। उसे समग्र जगत् वास्तविक स्वरूप में दृष्टि-गोचर होने लगता है। उसकी प्रवृत्ति भी तदनुकूल ही हो जाती है। राजा प्रदेशी आदि इस तथ्य के उदाहरण हैं।
निर्ग्रन्थ मुनियों के प्रति उसके अन्तःकरण में कितनी गहरी भक्ति होती है, यह सत्य भी प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित कर दिया गया है। ___ इस सूत्र से राजा और उसके मंत्री के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध प्राचीनकाल में होता था अथवा होना चाहिए, यह भी विदित होता है।
(२५) - तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। जियसत्तू राया सुबुद्धी य णिग्गच्छ।। सुबुद्धी धम्म सोच्चा जं णवरं जियसत्तुं आपुच्छामि जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया!
भावार्थ - उस काल उस समय चंपा नगरी में स्थविर मुनियों का पदार्पण हुआ। राजा जितशत्रु और सुबुद्धि उनके दर्शन, वंदन हेतु गए। ___यहाँ इतना अंतर है, सुबुद्धि ने स्थविरों से धर्मोपदेश सुनकर निवेदन किया - मैं जितशत्रु राजा से पूछ कर उसकी अनुज्ञा लेकर यावत् आपसे प्रव्रज्या स्वीकार करना चाहता हूँ।
यह सुनकर स्थविरों ने सुबुद्धि से कहा - देवानुप्रिय! जिससे तुम्हारी आत्मा को सुख हो, वैसा करो।
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