Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उदगणाए णामं बारसमं अज्झयणं उदकजात नामक बारहवां अध्ययन
. (१). जड़ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स णायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते बारसमस्स णं० के अढे पण्णत्ते?
भावार्थ - आर्य जंबू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से जिज्ञासा की - भगवन्! यदि श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने ग्यारहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ प्ररूपित किया है तो कृपया कहें, बारहवें अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया है?
(२)
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया। धारिणी देवी। अदीणसत्तू णामं कुमारे जुवराया वि होत्था। सुबुद्धी अमच्चे जाव रज्जधुराचिंतए समणोवासए।
शब्दार्थ - रज्जधुराचिंतए - राज्य के उत्तरदायित्व वहन की चिंता में निरत। ... भावार्थ - हे जंबू! उस काल, उस समय चंपा नामक नगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र नामक चैत्य था। चंपा नगरी का जितशत्रु नामक राजा था। उसकी रानी का नाम धारिणी था। उसके युवराज का नाम अदीन शत्रु था। उसके सुबुद्धि नामक मंत्री था, जो राज्य के उत्तरदायित्व वहन में जागरूक रहता था। वह श्रमणोपासक था। अतिमलिन, जलयुक्त परिखा
(३) तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमेणं एगे फरिहोदए यावि होत्था मेयवसारुहिरमंसपूयपडल पोच्चडे मयगकलेवर संछण्णे अमणुण्णे वण्णेणं जाव
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