Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපුදුසසුපපපපපපපපුපසපුළපපපය
शब्दार्थ - आससंति - विश्राम करते हैं, थाहं - 'टिकाव की जगह, णालिएराणं - . नारियलों का, पच्चुत्तरंति - बाहर निकलते हैं।
भावार्थ - तदनंतर माकंदी पुत्रों ने समुद्र का तट-टिकाव का स्थान प्राप्त किया। मुहूर्त भर वहाँ विश्राम किया। काठ के फलक का विसर्जन किया। रत्नद्वीप में उतरे। फलों की खोज की, उन्हें प्राप्त कर खाया। फिर नारियलों की खोज की। उन्हें प्राप्त कर, फोड़ कर तेल निकाला तथा एक दूसरे के शरीर पर मालिस की। तदनंतर वापी में उतरे, स्नान किया यावत् बाहर निकले, पृथ्वी शिला पट्टक.पर बैठे। आश्वस्त-विश्वस्त होकर सुखासन में पालथी मार कर बैठे हुए, चंपा नगरी, माता-पिता से यात्रा का आदेश, लवण समुद्र का उत्तरण, आकस्मिक तूफान का उठना, जहाज का नष्ट हो जाना, काष्ठफलक का प्राप्त होना, रत्नद्वीप पर उतरना - यह सब सोचते हुए अपने मन संकल्प को भग्न जानकर यावत् चिंतामग्न हो गए। भयभीत माकंदी-पुत्र भोग-विवश
(१६) . तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदियदारए ओहिणा आभोएइ आभोएत्ता असिफलगवग्गहत्था सत्तट्ठतलप्पमाणं उर्ल्ड वेहासं उप्पयइ २ ता ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए वीईवयमाणी २ जेणेव मागंदिय दारए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता आसुरुत्ता (ते) मागंदियदारए खरफरुसणिट्ठरवयणेहिं एवं वयासी
शब्दार्थ - फलग - ढाल, वग्ग - चंचल, उप्पयइ - उड़ती है।
भावार्थ - तब उस रत्नद्वीप देवी ने अवधिज्ञान का उपयोग कर माकंदी पुत्रों को देखा। हाथ में तलवार लहराते हुए, ढाल लिए सात आठ ताड़ वृक्ष जितनी ऊँचाई पर आकाश में . उड़ी। उत्कृष्ट देव गति से यावत् चलती-चलती जहाँ माकंदी पुत्र थे, वहाँ आई। अत्यंत क्रोध के साथ कठोर, निष्ठुर शब्दों में बोली।
(१७)' - हं भो माकंदिय दारया! अपत्थियपत्थिया! जइ णं तुब्भे मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरइ तो भे अस्थि जीवियं, अहण्णं तुब्भे मए सद्धिं
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