Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - माकंदी पुत्रों द्वारा रत्नद्वीप में प्रवेश SECOccccccccccccERGGEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEERRENERGENERGREEEEEEER रुद्दा खुद्दा साहसिया। तस्स णं पासायवडेंसयस्स चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा किण्हा किण्होभासा।
शब्दार्थ - पावा - पापिनी, खुद्दा - क्षुद्र-तुच्छ स्वभाव युक्त।
भावार्थ - उस सुंदर प्रासाद में रत्नद्वीप देवता नामक देवी रहती थी, जो पापपूर्ण, प्रचण्ड, रौद्र, क्षुद्र, दुस्साहसपूर्ण स्वभाव युक्त थी। उस उत्तम प्रासाद के चारों ओर चार वनखंड थे, जो वृक्षावली की सघनता के कारण श्याम आभा लिए हुए थे। माकंदी पुत्रों द्वारा रत्नद्वीप में प्रवेश
(१४) तए णं ते मागंदियदारगा तेणं फलयखंडेणं उवुज्झमाणा २ रयणदीववंतेणं संवुढा यावि होत्था।
शब्दार्थ - उवुज्झमाणा - उतराते, तैरते हुए, संवुढा - पहुंचे।
भावार्थ - तदनंतर वे माकंदीपुत्र उस काठ फलक के सहारे तैरते-उतराते रत्नद्वीप पर पहुंच गए।
(१५) तए णं ते मागंदियदारगा थाहं लभंति २ त्ता मुहुत्तंतरं आससंति २ त्ता फलगखंडं विसजेंति २ ता रयणदीवं उत्तरंति २ त्ता फलाणं मग्गण गवेसणं करेंति २ ता फलाइं गेण्हंति २ त्ता आहारेंति २ त्ता णालिएराणं मग्गणगवेसणं करेंति २ त्ता णालिएराई फोडेंति २ त्ता णालिएरतेल्लेणं अण्णमण्णस्स गायाई अब्भंगेति २ त्ता पोक्खरणीओ ओगाहिंति २ त्ता जलमजणं करेंति २ ता जाव पच्चुत्तरंति २ ता पुढविसिलापट्टयंसि णिसीयंति २ आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया चंपा णयरिं अम्मापिउआपुच्छणं च लवणसमुद्दोत्तारणं च कालियवाय समुत्थणं च पोयवहणविवत्तिं च फलंयखंडस्स आसायणं च रयणदीवुत्तारं च अणुचिंतेमाणा २ ओहयमण संकप्पा जाव झियायेंति।
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