Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२६.
. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුදු सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवण समुहं मझमझेणं वीईवयमाणा? तं एवमवि गए जइ णं तुब्भे ममं अवपक्खह तो भे अस्थि जीवियं, अह णं णावयक्खह तो भे इमेणं णीलुप्पलगवल जाव एडेमि।
भावार्थ - अरे मौत को चाहने वाले माकंदी पुत्रो! क्या तुम जानते हो, मुझे छोड़कर शैलक यक्ष के साथ, लवण समुद्र के बीचों बीच होते हुए अपनी मंजिल तक पहुँच जाओगे? इतना होने पर भी यदि तुम मेरी ओर देखो, मुझे चाहो तो जीवित रह सकते हो। यदि मुझे नहीं देखते हो, नहीं चाहते हो तो मैं इस नीली आभा से युक्त तलवार से यावत् मस्तक काट कर फेंक दूंगी। ...
(४५) .. . .. तए णं ते मागंदियदारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म अभीया अतत्था अणुव्विग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणदीवदेवयाए एयमह्र णो आढंति णो परियाणंति णो अवयक्खंति अणाढायमाणा अपरियाणमाणा अणवयक्खमाणा सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमुदं मज्झमझेणं वीईवयंति।
भावार्थ - तब माकंदी पुत्र रत्नद्वीप देवी का यह कथन सुनकर भयभीत, त्रस्त, उद्विग्न और क्षुभित नहीं हुए। रत्न द्वीप देवी की बात का न उन्होंने कोई आदर दिया और न उसकी तरफ देखा ही। वे शैलक यक्ष के साथ लवण समुद्र के बीचों बीच आगे बढते रहे।
विवेचन - शैलक यक्ष ने माकंदी पुत्रों को पहले ही समझा दिया था कि रत्नदेवी के कठोर कोमल वचनों, उसकी धमकियों या ललचाने वाली बातों पर ध्यान न देना, परवाह न करना अतएव वे उसकी धमकी सुनकर भी निर्भय रहे।
तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदियदारया जाहे णो संचाएइ बहूहिं पडिलोमेहि य उवसग्गेहि य चालित्तए वा खोभित्तए वा वि परिणामित्तए वा लोभित्तए वा ताहे महुरेहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उवसग्गेडं पयत्ता यावि होत्था-हं भो मागंदियदारगा! जइ णं तुब्भेहिं देवाणुप्पिया! मए सद्धिं हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिंडियाणि य
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