Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र cocccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx
जहाँ शूलारोपित पुरुष था, वहाँ गए और बोले-'देवानुप्रिय! यह किसका वध स्थान है? तुम कौन हो? यहाँ कैसे आए? और किसने तुम्हें इस संकट में डाला?'
. (३४) तए णं से सूलाइए पुरिसे (ते) मागंदियदारए एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया! रयणदीवदेवयाए आघयणे। अहं णं देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ कागंदीए आसवाणियए विपुल पणियभंडमायाए पोयवहणेणं लवण समुदं ओयाए। तए णं अहं पोयवहण विवत्तीए.णिब्बुडुभंडसारे एगं फलगखंडं आसाएमि। तए णं अहं उखुज्झमाणे २ रयणदीवंतेणं संवूढे। तए णं सा रयणदीवदेवया ममं ओहिणा पासइ २ ता ममं गेण्हइ २ ता मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ। तए णं सा रयणदीवदेवया अण्णया कयाइ अहालहुसगंसि अवराहसि परिकुविया समाणी ममं एयारूवं आवयं पावेइ तं ण णज्जइ णं देवाणुप्पिया! तुम्हं पि इमेसिं सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ? ____ शब्दार्थ - आसवाणियए - घोड़ों के व्यापारी, ओयाए- अवगाहन किया, अहालहुसगंसिछोटे से, अवराहसि - अपराध पर।
भावार्थ - शूलारोपित पुरुष ने माकंदी पुत्रों को इस प्रकार कहा - देवानुप्रियो! रत्नद्वीप देवी का यह वध स्थान है। मैं जंबूद्वीप के अंतर्गत भारत वर्ष में काकंदी नामक नगरी का घोड़ों का व्यापारी हूँ। मैं वहाँ से विपुल मात्रा में विक्रेय सामग्री जहाज पर लाद कर लवण समुद्र पर उतरा। वहाँ मेरा जहाज संकट में पड़ गया। सारी सामग्री डूब गई। एक काष्ठ फट्टा मेरे हाथ आ गया। मैं उस पर तैरता-उतराता रत्नद्वीप पर पहुँच गया। रत्नद्वीप देवी ने अवधि अज्ञान (विभंग ज्ञान) से मुझे देखा और अपने साथ ले गई। मेरे साथ उसने विपुल काम-भोगों को भोगा। एक बार मेरे थोड़े से अपराध पर वह बहुत क्रोधित हो उठी और मुझे इस घोर संकट में डाल दिया। इसलिए देवानुप्रियो! न जाने तुम्हारे शरीर पर भी कब कौनसी आपत्ति आ पड़े, मैं यही सोच रहा हूँ।
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