Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - छुटकारे का उपाय xcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx.
___ (३५) तए णं ते मागंदियदारगा तस्स सूलाइयरस अंतिए एयमहूं सोचा णिसम्म बलियतरं भीया जाव संजायभया सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी-कहं णं देवाणुप्पिया! अम्हें रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं णित्थरिजामो?
शब्दार्थ - साहत्थिं - सही-सलामत, णित्थरिजामो - छुटकारा।।
भावार्थ - माकंदी पुत्र उस शूली पर चढे पुरुष का वृत्तांत सुनकर अत्यधिक भयभीत हो गए यावत् घबरा उठे। वे उस पुरुष से बोले - देवानुप्रिय! क्या हम रत्न द्वीप देवी के हाथों से सही-सलामत छुटकारा पा सकते हैं?
छुटकारे का उपाय
(३६) तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदियदारगे एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! पुरथिमिल्ले वणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए णाम आसरूवधारी जवखे परिवसइ। तए णं से सेलए जक्खे चोइसट्टमुद्दिपुण्णमासिणीसु आगयसमए पत्तसमए महया २ सद्देणं एवं वदइ - कं तारयामि? कं पालयामि?
भावार्थ - शूलारोपित पुरुष ने माकंदी पुत्रों से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! पूर्व दिशा वन खंड में शैलक यक्ष का आयतन-स्थान है। अश्व रूप धारी शैलक नामक यक्ष वहाँ रहता है।
. वह शैलक यक्ष चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा का समय आने पर अत्यंत ऊँचे स्वर से यों कहता है - 'किसे तारूँ, किसे रक्षित करूं?'
तं गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! पुरथिमिल्लं वणसंडं सेलगस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणियं करेह २ त्ता जण्णुपायवडिया पंजलिउडा विणएणं पजुवासमाणा विहर(चिड)ह। जाहे णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वएजा-कं तारयामि? कं पालयामि? ताहे तुम्भे (एवं) वयह-अम्हे तारयाहि, अम्हे पालयाहि।
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