Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - उद्धार की अभ्यर्थना और शर्त
२३ cococcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccce उद्धार की अभ्यर्थना और शर्त
(३९) तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी-कं तारयामि? कं पालयामि? तए णं ते मागंदियदारगा उट्ठाए उठेति करयल जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-अम्हे तारयाहि अम्हे पालयाहि। तए णं से सेलए जक्खे ते मागंदियदारए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! तुन्भं मए सद्धिं लवण समुद्देणं मझमझेणं वीईवयमाणाणं सा रयणदीवदेवया पावा चंडा रुद्दा साहसिया बहूहिं खरएहि य मउएहि य अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गे य उवसगं करेहिइ। तं जइ णं तुन्भे देवाणुप्पिया! रयणदीवदेवयाए एयमढे आढाह वा परियाणह वा अवयक्खह वा तो भे अहं पिट्ठाओ विधुणामि। अह णं तुब्भे रयणदीवदेवयाए एयमटुं णो आढाह णो परियाणह णो अवयक्खह तो भे रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं णित्थारेमि।
शब्दार्थ - अणुलोमेहिं - मनोनुकूल, पडिलोमेहि. - प्रतिकूल, आढाह - आदर दोगे, परियाणह - जानोगे-मानोगे, अवयक्खह - ध्यान दोगे, विधुणामि - गिरा दूंगा। .
भावार्थ - यथा समय शैलक यक्ष वहाँ आया और आवाज लगाई। किसका उद्धार करूँ, किसकी रक्षा करूँ? तब माकंदी पुत्र उठे, उठ कर हाथ जोड़े, मस्तक झुकाए यों कहा - 'हमें तारो, हमारी रक्षा करो।' ___ इस पर शैलक यक्ष माकंदी पुत्रों से बोला - 'देवानुप्रियो! जब तुम मेरे साथ लवण समुद्र के बीचों-बीच होते हुए गुजरोगे तब रत्नद्वीप देवी, जो पापिनी प्रचण्ड रौद्र, क्षुद्र और दुस्साहसिनी है, बहुत से कठोर, कोमल, मनोनुकूल, मनःप्रतिकूल, श्रृंगार युक्त, करुणायुक्त उपसर्गों द्वारा विघ्न उपस्थित करेगी। देवानुप्रियो! तब तुम यदि रत्नद्वीप देवी के ऐसे कथन को सुनकर आदर दोगे, मानोगे, उस ओर ध्यान दोगे तो मैं अपनी पीठ से नीचे गिरा दूंगा। यदि तुम रत्नद्वीप देवी की उन बातों को आदर नहीं दोगे, ध्यान नहीं दोगे तो मैं रत्नद्वीप देवी के हाथों से तुम्हें सही सलामत निकाल दूंगा।'
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