Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१८
. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र saacaaEEEEEEEEEEEEEEEEEKKEKXSEEKIKEKRICORKINGERacecaceaeaacsex स्वीकार किया, निर्णय किया। वे पूर्वदिशावर्ती वनखंड में गए। वहाँ जाकर वापियों में यावत् सरोवरों में स्नानादि किया, वृक्ष कुंजों में यावत् लता कुंजों में रमण करते हुए कुछ समय रहे।
(२६) . तए णं ते मागंदियदारगा तत्थ वि सई वा जाव अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता तत्थ णं वावीसु य आलीघरएसु य विहरंति। ___ भावार्थ - माकंदी पुत्रों को वहाँ भी सुख, शांति और प्रीति अनुभूत नहीं हुई। तब वे उत्तरदिशावर्ती वनखंड में गए। वहाँ जाकर बावड़ियों में स्नान किया यावत् लता मण्डपों में विहार किया।
(३०) तए णं ते मागंदियदारया तत्थ वि सई वा जाव अलभमाणा जेणेव पच्चत्थिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता जाव विहरंति।
भावार्थ - जब वहाँ भी उनको कोई आनंद, उल्लास या प्रसन्नता का अनुभव नहीं हुआ। तब वे पश्चिम दिशावर्ती वनखंड में गए। वहाँ जाकर यावत् पूर्ववत् मनोरंजन पूर्वक विहार करने लगे।
(३१) .. तए णं ते मागंदियदारगा तत्थवि सई वा जाव अलभमाणा अण्णमण्णं एवं बयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे रयणदीवदेवया एवं वयासी - एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! सक्कस्स वयणसंदेसेणं सुट्ठिएण लवणाहिवइणा जाव मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं। तं सेयं खलु अम्हं दक्खिणिल्लं वणसंडं गमित्तए - तिकट्ट अण्णमण्णस्स एयमढें पडिसुणेति २ त्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - पश्चिमी वनखंड में विहार करते हुए माकंदी पुत्र चैतसिक शांति यावत् आत्मपरितुष्टि प्राप्त नहीं कर पाए। इसलिए वे परस्पर यों बात करने लगे। रत्नद्वीप देवी ने हमें यह कहा था कि शक्रेन्द्र के आदेश से लवणाधिपति सुस्थित देव द्वारा उसे सफाई के लिए नियुक्त किया गया है यावत् तुम दक्षिणी वनखंड में मत जाना। वहाँ जान खतरे में पड़ सकती है। इसमें
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