Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - काष्ठ-फलक के सहारे माकंदी पुत्र बचे ७ RecccccccccccccccccccceERICKEEPerseccccccccccccx तरह वह गगनतल से-ऊपर से नीचे गिरने लगी। वेग पूर्वक आते हुए बड़े गरुड़ से वित्रस्त नाग कन्या की तरह वह पलायन-सा करने लगी। जन समूह के कोलाहल से भयत्रस्त, स्थान भ्रष्ट अश्व किशोरी-बछेरी की तरह वह ईधर-उधर मानो दौड़ रही हो। गुरुजनों द्वारा जिसका अपराध देख लिया गया हो, ऐसी कुल कन्या जिस तरह अव्यक्त शब्द करती हुई लजाती है, उस प्रकार झुकने लगी। तरंगों की सैकड़ों टक्करों से प्रताड़ित होकर वह नौका ईधर-उधर इस तरह घूम रही थी, मानों निरालंब होकर गगनतल से गिर पड़ी हो। उसकी ग्रंथियों-संधियों से चूती हुई जल की बूंदें ऐसी लगती थी। मानो मृतपतिका नववधू आँसू टपका रही हो। अन्य राज्य के राजा द्वारा अधिरोहित-घेरी हुई महानगरी की तरह वह अपने भीतर बैठे हुए लोगों के भयजनित शोक-संविग्न विलाप करती हुई सी प्रतीत होती थी। कपट एवं प्रवंचना पूर्ण दूषित योग परिव्राजिका-संन्यासिनी की तरह निःशब्द थीउसमें स्थित लोग भय से हतप्रभ थे। घन घोर जंगल में चलने से परिशांत वृद्धा स्त्री की तरह वह निःश्वास छोड़ती हुई सी लगती थी। तपश्चरण के क्षय होने से-तजनित भोग क्षीण होने से, स्वर्ग से च्युत होती हुई श्रेष्ठ देवांगना की तरह वह मानो शोक कर रही हो। काष्ठ निर्मित उसका मुख भाग चूर्णित-खंड-खंड हो गया था। उसका नीचे का आधार स्तंभ तथा ऊपर का भाग जो सहस्रों लोगों के लिए आधार भूत था, भग्न हो चुके थे। उसके काष्ठ निर्मित पार्श्व भाग टेढे हो गए थे, जिससे वह शूलारोपित सी लगती थीं। लोहे की कीलों से जुड़े हुए काठ के फट्टे तड़-तड़ाकर टूट चुके थे। उसके अंग-प्रत्यंग परस्पर जुड़े हुए विभिन्न भाग विघटित हो गए थे। उसके रस्से गल गए थे और उसके सभी भाग विशीर्ण हो गए थे। पुण्यहीन मनुष्य के मनोरथ की तरह वह चिन्ता के भार से आहत थी।। उसके कर्णधार-निर्यामक, नाविक तथा वणिकजन एवं कर्मचारी विलाप कर रहे थे, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्नों, बहुमूल्य पदार्थ एवं विक्रेय सामग्री से परिपूर्ण थे। इसमें बहुत से लोग रुदन, क्रंदन, शोक, अश्रुपात एवं विलाप कर रहे थे। वह जल के अंतवर्ती पर्वत के शिखर से टकराई। उसके स्तंभ, तोरण, ऊपर लगे हुए ध्वज-दण्ड टूट गए थे। परस्पर जुड़े सैकड़ों काष्ठ फलक कड़-कड़ ध्वनि के साथ टूट गए थे। वह नौका वहीं-समुद्र में विलीन हो गई। काष्ठ-फलक के सहारे माकंदी पुत्र बचे
(११) तए णं तीए णावाए भिजमाणीए (ते) बहवे पुरिसा विपुलपडियभंडमायाए अंतोजलंमि णिमजावि यावि होत्था। तए णं ते मागंदियदारगा छेया दक्खा
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