Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र සසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසසයිසසසසසසසසසසසසසසසසසසසුන්
देवानुप्रियो! तुम बहुतसी वापियों, सरोवरों, वृक्ष मण्डपों, लता मण्डपों और पुष्पाच्छैन । मण्डपों में सुखपूर्वक मनोरंजन करते हुए, वहाँ रहो।
। (२३) - जइ णं तुब्भे एत्थ वि उब्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भविज्जाह तो णं
तुन्भे उत्तरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह। तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा तंजहा - सरदो य हेमंतो य।
तत्थ उ सणसत्तिवण्णकउ(हो)ओ णीलुप्पलपउमणलिणसिंगो। .. सारस चक्कवायरवियघोसों सरयउऊ-गोवई साहीणो॥ १॥ तत्थ य सियकुंदधवलजोण्हो कुसुमियलोद्धवण संडमंडल तलो। . तुसारदग-धारपीवरकरो हेमंत उऊ ससी सया साहीणो॥२॥
शब्दार्थ. - सण - वल्कल प्रधान वनस्पति विशेष, सत्तिवण्ण - सप्तवर्ण नामक वनस्पति विशेष, कउओ - स्कंध का उन्नत भाग, गोवई - वृषभ-साँड, जोण्हो - ज्योत्स्ना, मंडलतलप्रतिबिंब, तुसार - हिमकण, दगधारा - जलधारा, पीवरकरो - परिपुष्ट, उज्ज्वल किरणें, . हेमंत उऊ ससी - हेमंत ऋतु का चंद्रमा।
भावार्थ - यदि तुम वहाँ ऊब जाओ, उद्विग्न हो जाओ, मनोरंजन हेतु तुम्हारे में और उत्कंठा जगे तो तुम उत्तर दिशावर्ती वन खंड में चले जाना। वहाँ शरद और हेमंत-दोनों ऋतुएँ एक साथ विद्यमान रहती हैं। ___यहाँ शरद ऋतु का वृषभ के रूपक से वर्णन है। सन और सप्तपर्ण ही मानो उसका ऊंचा स्कंध भाग है। शरद ऋतु में विकसित होने वाले नीलोत्पल ही उसके सींग है। सारस और चक्रवाकों का गुंजन ही जिसका गर्जन है। वह शरद ऋतु रूपी वृषभ स्वाधीन है, अपने स्वरूप में विद्यमान है।
यहाँ हेमंत ऋतु का चंद्रमा के रूपक से वर्णन किया गया है -
सफेद कुंद के पुष्प ही जिसकी धवल, श्वेत ज्योत्स्ना है। खिले हुए लोध्र वनखण्ड ही . जिसका प्रतिबिंब है। हिमकण युक्त बहती हुई जलधारा ही जिसकी द्युतिमय सघन किरणे हैं। ऐसा हेमंत ऋतु रूपी चन्द्रमा अपने स्वरूप से वहाँ सदैव विद्यमान रहता है।
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