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(७३) वर्गकेवलि-वृत्ति - हरिभद्रसूरिजीने इसकी रचना करके संघकी विनति से इसका नाग किया था ।
(७४) विशेषावश्यक - वृत्ति - यह 'विसेसावस्सय ' की वृत्ति है ।
(७५) वीरथयं ।
(७६) वीरांगदकहा ।
(७७) वीसवीसिया (विंशतिर्विशिका ) - इसमे दान, पूजा आदि चातका निरूपण है ।
( ७८) वेदवाह्यता निराकरणता ।
(७९) व्यवहारकल्प - वृत्ति - ' ववहारकप्प ' नामक आगमकी यह टीका है।
(८०) शात्रवार्तासमुच्चय- इसमें आत्मा, हिंसा, सर्वज्ञता इत्यादि विषयक जैन मान्यताका निरूपण है और वैदिक, बौद्ध, साख्य, ब्रह्माद्वैतवादियोके कितनेक मन्तव्यका खंडन है । (८१) शास्त्रवार्तासमुच्चय टीका याने दिक्प्रपा - यह ' गात्रवार्तासमुच्चय' की टीका है ।
(८२) श्रावकधर्मसमास वृत्ति- यह
टीका है।
'सावगधम्मसमास' की
(८३) श्रावकप्रज्ञप्ति ।
(८४) श्रावकप्रज्ञप्ति टीका- यह 'श्रावकप्रज्ञप्ति ' की टीका है।