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अड़तालीस
चारित्र चक्रवर्ती
है। समझ में नहीं आता कि गांधीवादी भारत के भाग्यविधाताओं का ध्यान सादगी की साकार मूर्ति सेवाग्राम की कुटी की ओर क्यों नहीं जाता ? लुई फिशर ने गांधीजी के विषय
लिखा है- 'Gandhi is the symbol of lifelong renunciation and dedication.' गांधीजी आजीवन त्याग तथा आत्मसमर्पण के प्रतीक के रूप थे। गांधजी कहा था मेरा जीवन ही तुम्हारे लिए मेरा संदेश है । (My life is my message.)
दो हजार वर्ष पूर्व ग्रीस देश सभ्यता तथा समृद्धि के शिखर पर था । उस देश की अप्रतिम विभूति सुकरात का जीवन सार्वजनिक शान्ति के मार्ग को सूचित करता हुआ प्रतीत होता है। जहाँ आज तरह-तरह की आवश्यकताओं को उत्पन्न करके उनकी पूर्ति हेतु कल, कारखानों तथा उनके लिए धन-संग्रह के लिए भारत लालायित है, वहाँ सुकरात कहता था कि- “जितनी जरूरतों को तुम कम करोगे, उतना ही तुम परमात्मा के सदृश बनोगे।"" सुकरात ने आवश्यकताओं को अल्पतम करते हुए जीवन व्यतीत करने IT अभ्यास कर लिया था । सुकरात बाजार में जाकर विविध विक्रययोग्य वस्तुओं को देखकर सोचता था, इनमें से किन-किन पदार्थों के बिना मेरा काम चल सकता है ??
जब समाज में त्यागी पुरुषों की वृद्धि होती है तब राष्ट्र उन्नत होता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लोकमान्य तिलक, देशबन्धु चित्तरंजनदास, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय आदि महानीय विभूतियों के त्याग के फलस्वरूप गांधीजी ने भारत को विजयो बनाया था। आज त्यागियों का स्थान स्वार्थियों ने, "Selfless" की जगह पर "Selfish" लोगों ने ग्रहण किया और वे स्वार्थी (Selfish) लोग मछली बेचने का (Sell Fish) धन्धा करने लगे। इस हिंसा के कारण देश की जनता सुखी नहीं है, यद्यपि बहस द्वारा तथा कल्पित आँकड़ों के आधार पर अथवा अन्य लोगों की सम्मतियाँ बताकर हमें बच्चों की तरह समझाया जाता है कि अब तुम्हारी हालत बहुत अच्छी हो गई, तुम उन्नत हो रहे है । यह भी विनोदप्रद बात है । क्षीण शरीर व्यक्ति में यदि बल की वृद्धि होती है, उसका वजन बढ़ता है, तो क्या उसे मालूम नहीं पड़ता ? क्या उसे समझाया जाता है कि तुम अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति कर रहे हो ? यदि देश भौतिक विकास से सुखी हो रहा है, तो उसका अनुभव क्यों नहीं हो रहा है, दुःखों की वृद्धि क्यों हो रही हैं ?
वास्तव में शान्ति और उन्नति का मार्ग आत्मा के गुणों को विकसित करना तथा विलासिता से विमुख होना है। जब मनुष्य भोग-विलास की ओर कदम बढ़ाता है, तो वह कुछ काल के पश्चात् पतन को प्राप्त करता है । इतिहास इस बात का साक्षी है,
1. He trained himself to live in the most frzugal manner. "How many things I can do without ?" he would exclaim on looking at the goods exposed for sale in the market-places. -"The Paths of Peace' by H. Bills.
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