Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्राचीन ऐतिहासिक कालगणना
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शाखाओं के नामों पर ध्यान देने से अनुमान होता है कि कहीं-कहीं स्थान भेद के अतिरिक्त गोत्र-भेदानुसार भी शाखाओं के भेद प्रभेद हुए । स्थविर सुस्थित द्वारा कोटिकगण की स्थापना हुई, जिससे उच्चानागरी, विद्याधरी, वज्री एवम् माध्यमिका ये चार शाखाएं तथा ब्रम्हलीय, वस्थालीय वाणिज्य और पण्हवाहणक, ये चार कुल उत्पन्न हुए। इस प्रकार आर्य सुहस्ति के शिष्यों द्वारा बहुत अधिक शाखाओं और कुलों के भेद प्रभेद उत्पन्न हए । आर्य सुस्थित के अर्हद्दत्त द्वारा मध्यमा शाखा स्थापित हुई और विद्याधर गोपाल द्वारा विद्याधरी शाखा । आर्यदत्त के शिष्य शांतिसेन ने एक अन्य उच्चानागरी शाखा की स्थापना की। आर्यदत्त शांतिसेन के श्रेणिक तापस कुवेर और ऋषिपालिका ये चार शिष्य हुए, जिनके द्वारा क्रमशः प्रार्य सेनिका, तापसी कुवेर और ऋषिपालिका ये चार शाखाएं निकली । आर्य-सिंहगिरि के शिष्य आर्य-शमित द्वारा ब्रह्मदीपिका तथा आर्य वज्र द्वारा आर्य वज्री शाखा स्थापित हुई । आर्य-वज्र के शिष्य वज्रसेन, पद्म और रथ द्वारा क्रमशः आर्य-नाइली पदमा और जयन्ती नामक शाखाएं निकली। इन विविध शाखाओं व कूलों की स्थान व गोत्र आदि भेदों के अतिरिक्त अपनी अपनी क्या विशेषता थी, इसका पूर्णतः पता लगाना संभव नहीं है। इनमें ये किसी किसी शाखा व कुल के नाम मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त मूर्तियों आदि पर के लेखों में पाए गये हैं, जिनसे उनको ऐतिहासिकता सिद्ध होती
प्राचीन ऐतिहासिक कालगणना
कल्पसूत्र स्थविराबली में उक्त आचार्य परम्परा के संबंध में काल का निर्देश नहीं पाया जाता । किन्तु धर्मघोषसूरि कृत दुषमकाल-श्रमणसंघ-स्तव नामक प्राकृत पट्टावली की अवचूरि में कुछ महत्वपूर्ण कालसंबंधी निर्देश पाये जाते हैं । यहां कहा गया है कि जिस रात्रि भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ, उसी रात्री को उज्जैनी में चंडप्रद्योत नरेश की मृत्यु व पालक राजा का अभिषेक हुआ । इस पालक राजा ने उदायी के निःसंतान मरने पर कुणिक के राज्य पर पाटलिपुत्र में अधिकार कर लिया और ६० वर्ष तक राज्य किया। इसी काल में गौतम ने १२, सुधर्म ने ८, और जंबू ने ४४ वर्ष तक युगप्रधान रूप से संघ का नायकत्व किया पालक के राज्य के साठ वर्ष व्यतीत होने पर पाटलिपुत्र में नव नन्दों ने १५५ वर्ष राज्य किया और इसी काल में जैन संघ का नायकत्व प्रभव ने ११ वर्ष, स्वयंभू ने २३, यशोभद्र ने ५०, संभूतिविजय ने ८, भद्रमाहु ने १४ और स्थूलभद्र ने ४५ वर्ष तक किया। इस प्रकार यहाँ तक वीर निर्वाण के २१५ वर्ष व्यतीत हुए। इसके पश्चात् मौर्य वंश का राज्य १०८ वर्ष रहा,
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