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जीवन इतर पर नहीं वरन् मल-मूत्र पर निर्भर करता है। फिर भी अगर कोई यह बात कहता है तो सुनने वालों को बुरा लगता है। मगर इससे सच्चाई कैसे बदल सकती है? सत्य तो सत्य ही है, चाहे किसी को वह पसन्द हो या नहीं। अतएव यह भूमि-रत्नप्रभा नरक के तल पर है, ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
गौतम स्वामी ने रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में पूछते हुए 'इसीसे कहा है, लेकिन अन्य पृथ्वियों के सम्बन्ध में प्रश्न करते समय इस शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। 'इसीसे' कहकर गौतम स्वामी ने मनुष्यों को यह बतलाया है कि गर्व न करो हम सब नरक पर ही बसे हैं। ज्ञानी जन असली बात नहीं भूलते, इसी कारण गौतम स्वामी ने 'इसीसे' कहा है।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया-'हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नरकावास हैं।'
नरकावास के विषय में पूछने के साथ ही और सब जीवों के वास के सम्बन्ध में भी भगवान से गौतम स्वामी ने प्रश्न किये हैं। यह बड़े घर का इतिहास है। कहां नरक और जल के जीव और कहां जगत् के नाथ भगवान्? फिर भी गौतम स्वामी ने उन सब के विषय में प्रश्न किये और भगवान् ने सब प्रश्नों के उत्तर दिये।
अगर कोई राजा अपने राज्य के घरों की गणना करेगा तो केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सवर्णों के घर ही गिनेगा या सभी पूजा के घर गिनेगा? अगर वह भंगी के घरों की गणना छोड़ देता है तो उसके राजतंत्र में त्रुटि आ जायेगी। ऊंच नीच का भेदभाव लोगों में भले रहे, मगर जब गणना होगी तब सभी की गणना होगी। हां, भेद विचार तो सभी जगह रहेगा लेकिन अभेद विचार से सब की गणना हो जाती है और सब जीवों की गणना करके भगवान् ने सबके साथ प्रीति जोड़ी है।
यह विचारणीय बात है कि गणधर भगवान् ने इन सब जीवों का हिसाब क्यों लगाया है? नरक के जीवों के रहने के स्थान कितने ही हों, उन्हें इनसे क्या प्रयोजन था? लेकिन जो बात की बारीकी को समझता है, वह सब लोगों को अपने हाथ में कर लेता है। वह सब से प्रेम रखता है। इसी प्रकार ज्ञानियों ने सब जीवों को अपने हाथ में कर रक्खा है। उन्होंने यह हिसाब लगाकर स्वर्ग के जीवों को नरक के जीवों से प्रेम करवाया है। इसलिए ऊपरी भेदभाव को भूलकर आत्मतत्व का विचार करना चाहिए। १६ श्री जवाहर किरणावली
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