Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 258
________________ पूर्व कर्म दो प्रकार के होते हैं-शुभ और अशुभ। जो कर्म श्लाघ्य प्रसंशनीयता से रहित हैं वे अशुभ कर्म कहलाते हैं अथवा बद्ध का अर्थ 'बाह्य' भी है अर्थात् श्लाघा प्रशंसा से जो बाहर है, वह सब अशुभ कर्म कहलाते हैं। बद्ध कर्म कैसे होते हैं? कर्म किये बिना नहीं होते। क्रियते इति कर्म' जो किया जाय वह कर्म कहलाता है। सामान्य रूप से कर्म का बंध होना बद्ध कहलाता है और बंध हुए कर्मों को विशेष पोषण देना स्पृष्ट कहलाता है। बद्ध कर्म को पोषण किस प्रकार दिया जाता है, यह बात समझने के लिए एक उदाहरण दिया जाता है। किसी खेत में कोई बोई हुई चीज उगती है। उस उगती चीज को जल, खाद आदि द्वारा पोषण न दिया जाय तो या तो वह सूख जायगी या पैदावार बहुत कम होगी। इसके विपरीत अगर उसे पोषण मिल गया तो वह विशेष रूप से उत्पन्न होगी। इसी प्रकार एक तो सामान्य रूप से कर्म बांधना और दूसरे उन्हें खूब पोषण देकर ऐसी गाढ़ी तरह से बांध लिया कि फिर उद्वर्तन करण के सिवाय कोई करण न लग सके, इसे निधत्त कहते हैं। तत्पश्चात् कर्मों को घटाया नहीं किन्तु और अधिक पोषण देकर निकाचित कर दिया। निकाचित कर्म-घटते-बढ़ते भी नहीं है। उनमें कोई करण नहीं लगता। ___ कर्मों को बांधने और पुष्ट करने की बात समझाने के लिए एक उदाहरण लीजिए:- एक आदमी ने पाप किया, यह कर्म का बंध होना कहलाया। फिर किये हुए कर्म की प्रशंसा करके उसे खूब गाढ़ा और पुष्ट बनाया। कदाचित् उस पाप करने वाले को कोई ज्ञानी मिल गया। ज्ञानी ने पापी को समझाया-'देख, भाई! तूने यह पाप-बुरा काम किया है । ऐसा सुन कर पाप करने वाले को पश्चात्ताप हुआ। पश्चात्ताप करते-करते उसके कर्मों का अपवर्तन हुआ, अर्थात् विशेष शुभ अध्यवसाय द्वारा पाप कर्म को पुण्य कर्म में पलट दिया। और ज्ञानी के बदले यदि किसी अज्ञानी की संगति हो गई और अज्ञानी ने उस पाप कर्म की प्रशंसा कर दी, जिससे पाप करने वाला फूल गया उससे अपने किये पाप पर गर्व हुआ तो इससे कर्म का उद्वर्तन हुआ। अर्थात् वह बंधे कर्म और भी अधिक गाढ़े हो गये। जीव के अध्यवसाय के अधीन ही कर्मों की न्यूनता- अधिकता और तरतमता होती है। दो मित्रों की एक कथा प्रसिद्ध ही है कि उनमें से एक धर्मस्थानक में धर्म क्रिया करने गया और दूसरा वेश्या के घर गया। धर्मस्थानक में जाने वाले ने सोचा- अरे, यहां क्यों आ फंसा मैं? मेरा मित्र तो वेश्या के घर पहुंच कर मौज उड़ा रहा होगा और मैं यहां आ पड़ा हूं! इसी प्रकार वेश्या - भगवती सूत्र व्याख्यान २४५

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