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सिद्ध-हां, अवश्य। राजा-तो हम उसे कैसे पहचान सकेंगे?
सिद्ध ने कहा-पहले मंगतों को खूब टुकड़े बंटवाओ, फिर उन सबको बाड़े में बंद करके, उनमें से एक-एक को बाहर निकालो। जिस मंगते को बाहर निकालो, उससे कहते जाना कि अपने पास के टुकड़े फेंक दे तो तुझे राज्य देंगे। जो मंगता तुम्हारी बात पर विश्वास करके सब टुकड़े फेंक दे, उसे तो राजा बना देना, और जो थोड़े फेंक दे तथा थोड़े रख ले उसे प्रधान बना देना।
सिद्ध के पास से राजा और प्रधान लौट आये। राजा ने आज्ञा दी-आज सब लोग मंगतों को खूब टुकड़े बांटें। मंगतों के पास बहुत-बहुत से टुकड़े हो गये। इसके पश्चात् राजा ने उन सब को एक बाड़े में घेर दिया और फिर उनमें से एक-एक को निकाल कर कहने लगा अगर तुम अपने सब टुकड़े फेंक दो तो तुम्हें राज्य दूं।
मंगते सोचते-भला कहीं टुकड़े फेंकने से राज्य मिलता है। हमारे भाग्य में राज्य का योग-संयोग ही बदा होता तो पराये टुकड़ों पर गुजर क्यों करना पड़ता? इस प्रकार सोचकर वे कहते-आज बड़े भाग्य से टुकड़े मिले हैं। इससे टुकड़े मत फिंकवाओ। राजा ऐसे सब भिखारियों को निकालता जाता था।
आखिर एक भिखारी द्वार पर आया। उससे भी यही बात कही गई। उसने सोचा राजा कहता है तो टुकड़े फेंक देना अच्छा है, राज्य चाहे मिले या न मिले! ऐसा सोचकर उसने सब टुकड़े फेंक दिये। राजा ने उसे बिठा लिया।
उसके पश्चात् राजा ने उसी क्रम से फिर भिखारियों को निकालना आरम्भ किया। कुछ भिखारियों के पश्चात् एक भिखारी आया। टुकड़े फेंकने के लिए कहने पर उसने सोचा-राजा कहता है, राज्य दूंगा। अगर इसने राज्य न दिया तो अभी-अभी भूखे मरना पड़ेगा। राजा की बात पर अविश्वास करना ठीक नहीं है, उसने कहा-मैं सब टुकड़े तो नहीं फेंकूगा, हां, कुछ रख लूंगा।' राजा ने कहा-जैसी तुम्हारी इच्छा हो, करो। भिखारी ने अच्छे-अच्छे कुछ टुकड़े रख लिये और शेष फेंक दिये। राजा ने उसे भी बैठा लिया और सब भिखारियों को छोड़ दिया।
दूसरे दिन राजा ने पहले भिखारी को राजा और दूसरे को प्रधान बना दिया। राजा बना हुआ भिखारी सोचने लगा, टुकड़े त्यागने से मुझे राज्य मिला
- भगवती सूत्र व्याख्यान २५३