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है, इसलिए अब और अधिक त्याग करना चाहिए। प्रधान बना हुआ भिखारी सोचता था, टुकड़े तो राजा से मिलेगा ही, इसलिए राजा और प्रजा दोनों से खाना ठीक नहीं है। इस प्रकार इन दोनों से राजा को बहुत आनन्द हुआ। पहले वाले राजा और प्रधान को भी इससे बड़ा संतोष हुआ।
__ इस दृष्टान्त के अनुसार संसार के भोग्य पदार्थ टुकड़े हैं और पंडित, बालपंडित तथा बाल मनुष्य, टुकड़े मांगने वाले फौज के समान हैं। ज्ञानी पुरुषों का कथन है कि अगर तुम भिखारी हो तो क्या हुआ? अगर मोक्ष रूपी राज्य के लिए सब टुकड़े फैंक दो तो तुम्हारी गणना पंडितों में होगी। अगर सब छोड़ने की उदारता नहीं है तो भी खराब-खराब टुकड़े तो फैंक ही दो। ऐसा करने पर राजा नहीं तो प्रधान तो बन ही जाओगे। अर्थात बालपंडित-श्रावक कहलाओगे। आज थोड़ा त्यागने वाला, त्याग की महिमा समझ लेगा तो कल पूरा त्याग भी कर देगा। लेकिन जरा भी त्याग न करने वाला भिखारी ही बना रहेगा अर्थात् बाल ही रहेगा।
अगर आप सहसा त्याग नहीं कर सकते, तो कम से कम ऐसी वस्तुओं का अवश्य त्याग कीजिए, जिन्हें त्यागने से आपको कोई हानि नहीं मालूम होती। इतना त्याग करने से भी आप कल्याण के भागी होंगे। जो वस्तु त्यागनी पड़ेगी ही, उसे स्वेच्छापूर्वक त्याग देना ही बुद्धिमत्ता का काम है।
तत्पश्चात् गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से प्रश्न किया- प्रभो! एकान्त बालजीव मरकर किस गति में जाता है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया-हे गौतम! बालजीव मरकर चारों गतियों में से किसी भी गति में जा सकता है।
फिर गौतम स्वामी दूसरा प्रश्न करते हैं-भगवन्! एकान्त पंडित मनुष्य मरकर कहां जाता है? यानि जिसमें विद्या चाहे कम हो किन्तु सर्वविरति विद्यमान है वह मनुष्य मृत्यु के पश्चात किस गति में उत्पन्न होता है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया हे गौतम! एकान्त पंडित मनुष्य नरक, तिर्यच और मनुष्य की गति में नहीं जाता। वह या तो देवलोक में उत्पन्न होता है या मोक्ष जाता है। अर्थात् कदाचित् आयु बांधता है कदाचित् नहीं बांधता। . भुज्यमान आयु के तीन हिस्सों में से दो हिस्से जब व्यतीत हो जाते हैं, और तीसरा हिस्सा आरम्भ होता है, तभी नवीन आयु का बंध होता है अर्थात् जीवन के तीसरे भाग में जीव अपने आगामी भव का निर्माण करता है। २५४ श्री जवाहर किरणावली
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