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गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् कहते हैं-हे गौतम! बालपंडित मनुष्य भी देवायु का ही बंध करता है। वह नरक, तिर्यंच या मनुष्य का आयुष्य नहीं बांधता।
भगवान् के इस उत्तर पर गौतम स्वामी फिर प्रश्न करते हैं-भगवन्! बालपंडित जीव देवयोनि में ही क्यों जाता है? इसके उत्तर में भगवान ने फरमाया-हे गौतम! वह बालपंडित मनुष्य भी देवायु का ही बंध करता है। वह नरक तिर्यंच या मनुष्य का आयुष्य नहीं बांधता।
भगवान् के इस उत्तर पर गौतम स्वामी फिर प्रश्न करते हैं-भगवन्! बालपंडित जीव देवयोनि में ही क्यों जाता है? इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया-हे गौतम ! वह बालपंडित मनुष्य तथारूप के श्रमण-महान के वचन सुनकर देश से आरंभ-परिग्रह का त्याग करता है। उस त्याग के प्रताप से वह जीव तीन गतियों से बच जाता है और चौथी देवगति में ही जन्म लेता है।
प्रत्याख्यान, संवर में है। संवर में मोक्ष की क्रिया होती है। भले ही यह क्रिया थोड़ी हो, परन्तु इसके होने पर मोक्ष की नींव पड़ जाती है। मोक्ष चाहे अनेक जन्मों के बाद मिले, परन्तु वह नरक एवं तिर्यंच योनि में उत्पन्न नहीं होता, केवल देव और मनुष्य ही होता है।
प्रत्याख्यान, संवर में है और शास्त्र के अनुसार देवगति संवर से नहीं, किन्तु आस्रव से होती है। संवर तो मोक्ष का कारण है। अतएव देव होने में प्रत्याख्यान से जो शेष बचता है, उसका भी कुछ प्रताप है एकान्त बालपन को त्यागने का कुछ लाभ हुआ ही, लेकिन त्याग करने से जो शेष रहा उसका भी रस घट गया, अर्थात् वह अप्रत्याख्यानी चौकड़ी से निवृत्त हो गया, प्रत्याख्यानी क्रिया रही। पहले अव्रत की क्रिया लगती थी, वह प्रत्याख्यान करने पर बंद हो गई। शास्त्र कहता है कि जिसके परिग्रह की ही क्रिया है और अव्रत की क्रिया नहीं है, वह जीव देव या मनुष्य ही होता है, व नरकगति या तिर्यंचगति में नहीं जाता। सारांश यह है कि परिग्रह की जो क्रिया रही है, उसके कारण देवलोक की प्राप्ति होती है, मगर प्रत्याख्यानी क्रिया से ही यह सब होता है।
२६४ श्री जवाहर किरणावली
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