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इसलिए हे गौतम! इसी कारण जो मृग को मारता है वह मृग के वैर से स्पृष्ट कहलाता है और जो पुरुष को मारता है वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट कहलाता है । और अगर मरने वाला छह मास के भीतर मरे तो मारने वाला कायिकी यावत्-पांच क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है। अगर मरने वाला छह मास के बाद मरे तो मारने वाला पुरुष कायिकी यावत् - पारितापनिकी क्रिया से चार क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है ।
प्रश्न- भगवन्! कोई पुरुष, किसी पुरुष को बरछी से मारे अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काट डाले, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होगा?
उत्तर - हे गौतम! जब तक वह पुरुष उसे बरछी द्वारा मारता है अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काटता है, तब वह पुरुष कायिकी, आधिकारणिकी यावत् प्राणातिपातिकी क्रिया से पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है और वह पुरुष, आसन्नवधक तथा दूसरे के प्राणों की परवाह नहीं करने वाला पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है।
प्रश्न- भगवन् ! एक सरीखे, सरीखी चमड़ी वाले, सरीखी उम्र वाले, सरीखे द्रव्य और उपकरण (शस्त्र आदि) वाले, कोई दो पुरुष आपस में एक दूसरे के साथ संग्राम करें। उसमें एक पुरुष जीतता है और एक पुरुष हारता है । हे भगवन्! ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर - गौतम ! जो पुरुष सवीर्य होता है वह जीतता है और जो वीर्यहीन होता है वह हारता है।
प्रश्न- भगवन्! इसका क्या कारण है कि यावत् - 'वीर्यहीन हारता
है ?
उत्तर- गौतम! जिसने वीर्यव्याघातक कर्म नहीं बांधे, नहीं स्पर्श किये, यावत् नहीं प्राप्त किये और उसके वे कर्म उदय में नहीं आये हैं, पर उपशान्त हैं, वह पुरुष जीतता है। जिसने वीर्यव्याघातक कर्म बांधे हैं, स्पर्श किये हैं और यावत्-उसके वे कर्म उदय में आये हैं पर उपशान्त नहीं हैं, वह पुरुष पराजित होता है। इसलिए हे गौतम! इस कारण ऐसा कहा है कि वीर्य वाला पुरुष जीतता है और वीर्यहीन हारता है।
व्याख्यान
अब गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं- भगवन् ! जंगल, वन आदि किसी भी जगह कोई आदमी घास इकट्ठा करके उसमें आग लगाना चाहता है, तो आग लगाने से क्रिया लगती है या नहीं? अगर लगती है तो कितनी क्रियाएं लगती २७४ श्री जवाहर किरणावली