Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 274
________________ लेकिन ऐसी बातों से कृत का नाश और अकृत के भोग का दोष नहीं आता। जीव ने जो आयुकर्म पूर्वभव में बांधा था, वही इस भव में वह भोगता है, दूसरा नहीं भोगता। इसलिए कृत का नाश और अकृत का भोग नहीं कहा जा सकता। हां, जो कर्म धीरे-धीरे बहुत वर्षों में भोगना था, वह कारणवश जल्दी-अन्तर्मुहूर्त में भी-भोगा जाता है। इसी को आयु का नाश कहते हैं। एक रस्सी अगर एक सिरे से जलाई जाय तो देखक जलती है, अगर इकट्ठी करके एक साथ जलाई जाती है तो जल्दी जल जाती है। भीगा हुआ वस्त्र तह करके रख दिया तो देर में सूखता है, अगर फैला दिया तो जल्दी सूख जाता है। पानी का शोषण तो दोनों ही अवस्थाओं में होता है किन्तु एक अवस्था में धीरे-धीरे होता है और दूसरी अवस्था में जल्दी-जल्दी। इसी प्रकार आयुष्य भी दो प्रकार से भोगा जाता है-प्रदेश से और विपाक से। विपाक से भोगे हुए आयुष्य को तो सभी जानते हैं किन्तु प्रदेश से भोगे जाने वाले आयुष्य को नहीं जानते। लेकिन इसे न जानने के कारण ही कृत का नाश और अकृत का आगमन नहीं होता और न मोक्ष तत्व में ही कोई गड़बड़ पड़ती है। आयु का भोग किस प्रकार करना, यह बहुत कुछ अपने हाथ में है। इस संबंध में सावधानी रखनी चाहिए। आयुष्य सब से बड़ी वस्तु है। सब काम इसी पर निर्भर है। खेल तभी तक है, जब तक तेल है। तेल समाप्त हो जाने पर खेल भी खत्म हो जाता है। इसलिए बुद्धिमान् पुरुष खेल करने से पहले देख लेते हैं कि तेल है या नहीं? मनुष्य का जीव विघ्नों से व्याप्त है। आयु कब पूरी हो जायगी, यह नहीं कहा जा सकता। अतएव यह विवेक करने की आवश्यकता है कि पहले क्या करना और पीछे क्या करना चाहिए? सर्वप्रथम धर्म-कार्य कर लेना ही श्रेयस्कर है। भगवान् ने फरमाया है कि बाल-मनुष्य को कदाचित् स्वर्ग मिल जाता है, मगर मोक्ष नहीं मिल सकता। इस कथन से स्पष्ट है कि स्वर्ग मिलना कोई बड़ी बात नहीं है, पण्डितपन ही महत्वपूर्ण वस्तु है। एकान्त पण्डित में मनुष्य का आयुष्य कभी बंधता है और कभी नहीं भी बंधता। आशय यह है कि एकान्त पण्डित प्रथम तो उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेता है इसलिए आयु के बंध का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। कदाचित् उसी भव में मोक्ष न हो तो वैमानिक देव में जाता है और फिर जन्म लेकर आयु का आत्यन्तिक विनाश करके मोक्ष जाता है। भगवती सूत्र व्याख्यान २६१

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