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उद्योग वाद भी है। कर्मवाद श्रद्धा करने की चीज है और उद्योगवाद कार्य रूप में परिणत करने की वस्तु है।
. हम सभी लोग गर्भ में रह कर ही बाहर आये हैं, इस बात को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। यह भी प्रकट है कि हम लोग आड़े होकर गर्भ से बाहर नहीं निकले। बल्कि सिर या पैरों की ओर से अखण्ड रीति से निकल आये हैं। लेकिन क्या कभी आप इन सब बातों का स्मरण करते हैं ? आप एक ऐसे स्थान पर थे, जहां आदमी मर भी जाता है। मगर आप उस स्थान से जीवित ही बच आये। तो अब इस जीवन को बुरी करतूतों में खपा देना अच्छा है या अच्छे कार्यों में लगाना अच्छा है? आप इस पर विचार कीजिए और दुर्लभ जीवन को सार्थक बनाइए।
गर्भ से-जहां बालक मर भी जाता है, क्या आप झूठ, कपट आदि के प्रताप से बच आये हैं? आज आप आनन्दभोग को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं मगर क्या आनंद के प्रताप से ही आप गर्भ से जीवित निकले हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर यही कहना होगा कि आप ने पूर्व जन्म में दया, शील, संतोष आदि की शुभ क्रियाएं की थीं, उस पुण्य के प्रभाव से ही आप गर्भ से अखंड निकले हैं। वह पुण्य ही आड़ा आया और ऐसे खतरनाक स्थान से बचाया है। अब जन्मने के पश्चात् आप उस पुण्य को भूल कर पाप करते हैं, तो क्या कट-कट कर गर्भ से निकलने का ध्यान नहीं है? आपकी समझ में यह बात आ गई हो तो अपने पापों को काट कर गर्भ में आने के कारण को रोको। चाहे अभी कर्मस्थिति शेष हो और गर्भ मे आना भी पड़े, तब भी चेष्टा तो यही करो कि तुम्हें फिर गर्भ में न उपजना पड़े। इस बात का सदैव ध्यान रखना कि जहां से मैं इस स्थिति में जन्मा हूं, उसी नीच योनि-मूत्रपत्र पर; जैसे शूकर विष्ठा पर लुभाता है वैसे ही लुभाकर भोग का कीड़ा क्यों बन रहा हूँ? इस प्रकार विचार कर परमात्मा से प्रार्थना करना कि-हे नाथ ! मुझे बचा। मैं तेरी आज्ञा पालूंगा।
__ भगवान ने गर्भ की तीन दशाओं का वर्णन किया। अब जन्मने के पश्चात् की बात बतलाते हैं।
यह तो आप सभी लोग जानते हैं कि प्राणी मात्र पूर्वोपार्जित कर्म लेकर आये हैं। परन्तु समझने की बात यह है कि पूर्व-कर्म बदले भी जा सकते हैं, या जैसे बंधे हैं वैसे ही रहते हैं? आस्तिक मात्र पूर्व-कर्म तो मानता है, मगर उनके संबंध में विशेष बातें न जानने के कारण गड़बड़ी हो रही है। २४४ श्री जवाहर किरणावली
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